तरजुमा कंजूल ईमान
(अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत महेरबान रहमत वाला)
और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक मुसलमान न हो जाएं (14)
और बेशक मुसलमान लौंडी मुश्रिका औरत से अच्छी है (15)
अगरचे वह तुम्हें भाती हो और मुश्रिको के निकाह में न दो जब तक वो ईमान न लाएं (16)
और बेशक मुसलमान ग़ुलाम मुश्रिकों से अच्छा है अगरचे वो तुम्हें भाता हो, वो दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हैं (17)
और अल्लाह जन्नत और बख़्शिश की तरफ़ बुलाता है अपने हुक्म से और अपनी आयतें लोगों के लिये बयान करत है कि कहीं वो नसीहत मानें (सूरह बक़रह आयात 221)
(14) हज़रत मरसद ग़नवी एक बहादुर सहाबी थे. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हें मक्कए मुकर्रमा रवाना किया ताकि वहाँ से तदबीर के साथ मुसलमानों को निकाल लाएं. वहाँ उनाक़ नामक एक मुश्रिक औरत थी जो जाहिलियत के ज़माने में इनसे महब्बत रखती थी. ख़ूबसूरत और मालदार थी. जब उसको इनके आने की ख़बर हुई तो वह आपके पास आई और मिलने की चाह ज़ाहिर की. आपने अल्लाह के डर से उससे नज़र फेर ली और फ़रमाया कि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता. तब उसने निकाह की दरख़ास्त की. आपने फ़रमाया कि यह भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की इजाज़त पर निर्भर है. अपने काम से छुट्टी पाकर जब आप सरकार की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो हाल अर्ज़ करके निकाह के बारे में दर्याफ़्त किया. इस पर यह आयत उतरी. (तफ़सीरे अहमदी). कुछ उलमा ने फ़रमाया जो कोई नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ कुफ़्र करे वह मुश्रिक है, चाहे अल्लाह को एक ही कहता हो और तौहीद का दावा रखता हो. (ख़ाज़िन)
(15) एक रोज़ हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने किसी ग़लती पर अपनी दासी के थप्पड़ मारा फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर उसका ज़िक्र किया. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उसका हाल दर्याफ़्त किया. अर्ज़ किया कि वह अल्लाह तआला के एक होने और हुज़ूर के रसूल होने की गवाही देती है, रमज़ान के रोज़े रखती है, ख़ूब वुज़ू करती है और नमाज़ पढ़ती है. हुज़ूर ने फ़रमाया वह ईमान वाली है. आप ने अर्ज़ किया, तो उसकी क़सम जिसने आपको सच्चा नबी बनाकर भेजा, मैं उसको आज़ाद करके उसके साथ निकाह करूंगा और आपने ऐसा ही किया. इस पर लोगों ने ताना किया कि तुमने एक काली दासी से निकाह किया इसके बावुजूद कि अमुक मुश्रिक आज़ाद औरत तुम्हारे लिये हाज़िर है. वह सुंदर भी है. मालदार भी है. इस पर नाज़िल हुआ “वला अमतुम मूमिनतुन” यानी मुसलमान दासी मुश्रिका औरत से अच्छी है. चाहे आज़ाद हो और हुस्न और माल की वजह से अच्छी मालूम होती हो.
(16) यह औरत के सरपस्तों को सम्बोधन है. मुसलमान औरत का निकाह मुश्रिक व काफ़िर के साथ अवैध व हराम है.
(17) तो उनसे परहेज़ ज़रूरी है और उनके साथ दोस्ती और रिश्तेदारी ना पसन्दीदा
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