async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6267723828905762'/> MASLAK E ALAHAZRAT ZINDABAAD: अहले हदीस कामसूत्र
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Friday, October 23, 2015

अहले हदीस कामसूत्र

अहले हदीस कामसूत्र

बिस्मिल्लाह ह़िर रहमानिर्रहीम

अर्ज़ मुरत्तिब

यह एक तारीखी हकीक़त) ऐतिहासिक तथ्य( है कि गैर मुक़ल्लिदीन (जो खुद को अहले हदीस कहते हैं) का वजूद (स्थापित) अंग्रेज़ दौर से पहले न था | अंग्रेज़ के दौर से पहले भारत में न उनकी कोई मस्जिद थी ना मदरसा और ना कोई पुशतक | अंग्रेज़ ने भारत में क़दम जमाया तो अपना अव्वलीन हलीफ (सबसे पहली सहयोगी) उलमाए देवबंद को पाया | यही वोह उलमा अहले सुन्नत थे जिन्होंने अंग्रेज़ के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया और हजारों मुसलमानों को अंग्रेज़ के खिलाफ (विरोध) मैदाने जिहाद में ला खड़ा किया और जिस ने अंग्रेज़ के विरोध जिहाद को हराम करार दिया और मुसलमानों में तफरका और इन्तिशार (विभाजन एवं अराजकता) फैलाया और आज तक गैर मुक़ल्लिदीन अपनी रविश (विधि) पर क़ायम हैं |

फ़िक़ह हनफ़ी जो लगभग बारह लाख (१२०००००) मासाइल का मजमुआ (संग्रह) है इस अजीमुश्शान फ़िक़ह के चंद एक मसाइल पर ऐतराज़ करते हुवे गैर मुक़ल्लिदीन अवाम को यह बावर (विश्वास) कराने की कोशिश करते हैं कि फ़िक़ह क़ुरान व हदीस के विरोध है और गैर मुक़ल्लिद अवाम कि जुबान पर तो यह एक चलता हुवा जुमला कि "फ़िक़ह हनफ़ी में फुलां फुलां और ह्या सोज़ मसअला है" इस लिए ज़ुरूरत महसूस हुवी कि अवाम को अगाह किया जाये कि गैर मुक़ल्लिदीन की मुस्तनद किताबों में क्या क्या गंदे और हया सोज़ मसाइल (बातें) भरे पड़े हैं | अफ़सोस गैर मुक़ल्लिद उलमा ने यह मसाइल क़ुरान व हदीस का नाम लेकर बयान किये हैं | आप यकीन करें जितने हयासोज़ मसाइल (बातें) गैर मुक़ल्लिदीन ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाहू अलैहि व सल्लम से मनसूब (संबंधित) किये हैं किसी हिन्दू, सिख, इसाई या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेशवा (धार्मिक गुरु) से मनसूब (संबंधित) नहीं किये होंगे | गैर मुक़ल्लिदीन तक़ैय्या (जान बोझ) कर के इन मसाइल को छुपाते रहे हैं | इनकी कोशिश रही है कि हनफ़ी पर खाह मखाह के इतराज़ किये जायें ताकि उनके अपने मसाइल अवाम से पोशीदा (छुपी) रहें |

आप यह मसाइल पढेंगे तो हो सकता है कि कानों को हाथ लगायें और तौबा तौबा करें | शायद यह भी कहे कि ऐसी बातें लिखने की क्या जरूरत थी लेकिन यह हकीक़त है कि जिस तेज़ी से इखलाक को बालाए ताक रखते हुवे गैर मुक़ल्लिदीन अपना बुकलेट (Literature) फैला रहे हैं हकीक़त को आशकार (उजागर) करना हमारी मजबूरी है | दिए गये हवाले में कोई गलती हो तो मुत्तला फरमायें ताकि जल्द से जल्द इस्लाह कर दी जाये | दुआ करें कि अल्लाह तआला गैर मुक़ल्लिदीन को हिदायत फरमाएं और उम्मत को इस खाब्बिस फितने से बचायें आमीन ......
नफ़स की पुजारी

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक मनी (वीर्य) पाक है और खाना भी जाएज़ है

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

"मनी हर चंद पाक है" (अर्फुल्जादी पेज १०)
और मारुफ़ गैर मुक़ल्लिद आलिम अल्लामा वहिदुज्ज़मा खान लिखते हैं:

"मनी (वीर्य) खाह गाढ़ी हो या पतली, खुश्क (सुखा) हो या तर (भीगा) हर हाल में पाक है"

(नुज़ुलुल अबरार भाग १ पेज ४९)

और नामवर गैर मुक़ल्लिद आलिम मोलाना अबुल हसन मुहीउद्दीन लिखते हैं:

"मनी (Sperm) पाक है और एक कौल में खाने के भी इजाज़त है"

(फ़िक़ह मुहम्मदिया भाग १ पेज ४६)

टिप्पणी: कुल्फियां बनायें, कस्टर्ड जमायें या आइस क्रीम बनायें गैर मुक़ल्लिद मज़े उड़ायें |

गैर मुक़ल्लिदीन के नजदीक महिला की शर्म गाह (योनि) की रतुबत (पानी/रस) पाक है

मशहूर व मारुफ़ गैर मुक़ल्लिद आलिम वहीदुज्जामा खान लिखते हैं:

"महिला की शर्म गाह (योनि) की रतुबत पाक है"

(कन्जुल हकायक पेज १६)

नंगी गैर मुक़ल्लिदीन औरतों की किताब

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

"नमाज़ में जिसकी शर्म गाह (योनि) सब के सामने नुमाया (प्रकट) रही उसकी नमाज़ सही है" (अर्फुल जादी पेज २२)

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब सिद्दीक हसन खान लिखते हैं:

"महिला तनहा (अकेली) बिलकुल नंगी नमाज़ पढ़ सकती है | महिला दोसरी महिलाओं के साथ सब नंगी नमाज़ पढ़ें तो नमाज़ सही है | मियां बीवी दोनों अकट्ठे मादर जाद नंगे (Connatural Naked) नमाज़ पढ़ें तो नमाज़ सही है | महिला अपने बाप, बेटे, भाई, चाचा, मामा सब के साथ मादरजाद नंगी नमाज़ पढ़े तो नमाज़ सही है" (बदूरुल अहलह पेज ३९)

यह ना समझें कि यह मजबूरी के मसाइल होंगे |

अल्लामा वहीदुज्जामा वज़ाहत फरमाते हैं "

कपड़े पास होते हुवे भी नंगे नमाज़ पढ़ें तो नमाज़ सही है" (नुज़ुलुल अबरार भाग १ पेज ६५)

गैर मुक़ल्लिदीन का बहन और बेटी से आला ए तानासुल (लिंग) को हाथ लगवाना

गैर मुक़ल्लिदीन के शैखुल कुल फिल कुल मियां नज़ीर हुसैन देहलवी लिखते हैं:

"हर शख्स अपनी बहन, बेटी, बहु, से अपनी रानों की मालिश करवा सकता है और बवक्ते ज़रूरत अपने आलाए तानासुल (लिंग) को भी हाथ लगवा सकते हैं"

(फतवा नज़ीरिया भाग ३ पेज १७६)

पीछे के रास्ते सुहबत (संभोग) करना गैर मुक़ल्लिदीन के लिए जायज़ है और गुस्ल भी वाजिब नहीं

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम सिद्दीक हसन खान लिखते हैं:

"शर्म गाह (योनि) के अंदर झांकने के मकरूह होने पर कोई दलील नहीं" (बदूरुल अहला पेज १७५)

आगे लिखते हैं:

“रानुं में सुहबत (संभोग) करना और दुबुर (चूतड़) में सुहबत करना जायज़ है कोई शक नहीं बल्कि यह सुन्नत से साबित है” मुआज़ल्लाह – अस्ताग्फिरुल्लाह ( बदुरुल अहला पेज १५७)

और मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम वहीदुज्जामा लिखते हैं:

“बीवीयुं और लोंडीयूं के गैर फ़ितरी मुकाम (पीछे के मुकाम) के इस्तिमाल पर इनकार जाएज़ नहीं” (हदियुल मेहदी भाग १ पेज ११८)

आगे लिखते हैं:

“दुबुर (पीछे के मुकाम/ चूतड़) में सुहबत (संभोग) करने से गुसल भी वाजिब नहीं होता”

(नुज़ुलुल अबरार भाग १ पेज २४)

अल्लामा वहीदुज्जामा ने एक अजीब व ग़रीब मसअला गैर मुक़ल्लिदीन के लिए यह भी बयान किया कि:

“खुद अपना आला ए तनासुल (लिंग) अपनी ही दुबुर (चूतड़) में दाखिल किया तो गुस्ल वाजिब नही” (नुज़ुलुल अबरार भाग १ पेज २४)

टिप्पणी: यह कैसे मुमकिन है गैर मुक़ल्लिदीन तजर्बा (अनुभाव) कर के दिखायें |

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक मुतआ(अस्थायी विवाह)जाएज़ है

अल्लामा वहीदुज्जामा लिखते हैं:

“मुतआ की अबाहत ( जाएज़ होना कुरान की कतई आयात से साबित है”

(नुज़ुलुल अबरार भाग २ पेज ३३)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक ज़िना (व्यभिचार)जायज़ है कोई हद नहीं

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

“जिनको ज़िना पर मजबूर किया जाये उसको ज़िना करना जायज़ है और कोई हद वाजिब नहीं | महिला की मजबूरी तो ज़ाहिर है | पुरूष भी अगर कहे कि मेरा इरादा ना था मुझे कुवते शहवत (शक्ति सेक्सी) ने मजबूर किया तो मान लिया जाएगा अगरचे इरादा ज़िना का न हो” (अर्फुल जादी पेज २०६)

टिप्पणी: गैर मुक़ल्लिद की हुकूमत आ गयी तो यही कुछ होगा |

गैर मुकल्लीदीन का माँ, बहन, बेटी का जिस्म (शरीर) देखना

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

" माँ, बहन, बेटी वगैरह कि क़बलो दुबुर (योनि एवं चूतड़) के सिवा पूरा बदन देखना जायज़ है" (अर्फुल जादी पेज ५२)

टिप्पणी: यह मसाइल पढ़कर हमें शर्म आती है ना जाने गैर मुक़ल्लिदीन इन पर कैसे अमल करते होंगे |

गैर मुक़ल्लिद महिला का दाढ़ी वाले पुरूष को दूध पिलाना

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम अल्लामा वहीदुल्ज्ज़मा लिखते हैं:

"जायज़ है कि महिला गैर पुरूष को अपना दूध छातीयुं से पिलाये अगरचे वह पुरूष दाढ़ी वाला होता कि एक दोसरे को देखना जायज़ हो जाये" ( नुज़ुलुल अबरार भाग २ पेज ७७)

टिप्पणी: याद रहे कि यह मसाइल क़ुरान व हदीस के नाम पर बयान किया जा रहा है |

गैर मुक़ल्लिद पुरूष चार से ज़ाइद (अधीक) बीवीयाँ रख सकते हैं

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब सिद्दीक हसन खान लिखते हैं:

"चार की कोई हद नहीं (गैर मुक्ल्लिद मर्द) जितनी औरतें चाहे निकाह में रख सकता है"

(ज़फरुल अमानी पेज १४१)

गैर मुक़ल्लिदीन का अपनी बेटी से निकाह (शादी)

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

"अगर किसी महिला से ज़ैद ने ज़िना किया और उसी से लड़की पैदा हुवी तो ज़ैद को अपनी बेटी से निकाह कर सकता है | (अर्फुल जादी पेज १०९)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक मुश्तजनी (हस्तमैथुन) जायज़ है

मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब नूरुल हसन खान लिखते हैं:

अगर गुनाह से बचना हो तो मुश्तज़नी (हस्तमैथुन) वजिब है |

(अर्फुल जादी पेज २०७)

टिप्पणी: और आगे जो लिखा है वोह बात क़ारिऐन ज़रा दिल थम के पढ़िये:

"और बअज़ (कुछ) सहाबा (अलैहिमुर्रिज्वान) भी किया करते थे" | (मुआज़ल्ला)

(अर्फुल जादी पेज २०७)

एक महिला पिता एवं पुत्र के दोनों के लिए हलाल

अल्लामा वहिदुज्ज़मा लिखते हैं:

"अगर बेटे ने एक महिला से ज़िना किया तो यह महिला बाप के लिए हलाल है इसी तरह इसके बरअक्स (विपरीत) भी" | (नुज़ुलुल अबरार भाग १ पेज २८)

बाप और बेटे की मुश्तरक (साझा) बीवी

अल्लामा वहिदुज्ज़मा लिखते हैं:

अगर किसी ने अपनी माँ से ज़िना किया, खाह ज़िना कर ने वाला बालिग हो या ना बालिग या क़रीबुल बुलूग, तो वह अपने खाविंद (पति) पर हराम नहीं हूई |

(नुज़ुलुल अबरार भाग २ पेज २८ )

टिप्पणी : बहुत खूब ! निकाह और ज़ि ना दोनों की गाड़ी चलती रहे |

ज़िना की औलाद बांटने का तरीका

अल्लामा वहिदुज्ज़मा लिखते हैं:

एक महिला (गैर मुक़ल्लिदह) से तीन (गैर मुक़ल्लिद) बारी बारी सुहबत (सेक्स) करते रहे और इन तीनों की सुहबत से लड़का पैदा हुवा तो लड़के पर कुरआ अंदाजी (आकर्षित कार्य) होगी | जिसके नाम क़ुरआ (आकर्षित) निकल आया उसको बेटा मिल जायेगा और बाक़ी दो को यह बेटा लेने वाला तिहाई दियत (देयधन) देगा | (नुज़ुलुल अबरार भाग २ पेज ७५)

गैर मुक़ल्लिदीन के लिए बहतरीन महिला

अल्लामा वहिदुज्ज़मा लिखते हैं:

"गैर मुक़ल्लिदीन के लिए (बहतर महिला वोह है जिसकी फुर्ज (योनि) तंग हो और शहवत (सेक्सी) के मारे दांत रगड रही हो और जमाअ (संभोग) कराते समय करवट से लेती हो"

(लुगातुल हदीस भाग ६ पेज ४२८) 

शर्म गाह (योनि) का महल (जगह) काइम (बर क़रार) रखने का नुस्खा

गैर मुक़ल्लिदीन के शैखेकुल फिलकुल मियां नजीर हुसैन दहलवी लिखेते हैं:

"महिला को ज़ेरे नाफ बाल उसतुरे से साफ़ करना चाहिए उखाड़ ने से महल (योनि) ढीला हो जाता है" (फ़तवा नज़ीरिया भाग 4 पेज ५२६)
गैर मुक़ल्लिदीन महिला हैज़ (माहवारी) से कैसे पाक हो
                                                                                       

मारूफ गैर मुक़ल्लिद आलिम अल्लामा वहिदुज्ज़मा गैर मुक़ल्लिद औरतूं को हैज़ (माहवारी) से पाक का तरीका बाते हुवे लिखते हैं:

"महिला जब हैज़ से पाक हो तो दीवार के साथ पेट लगा कर खड़ी हो जाये और एक टांग इस तरह उठाए जैसे कुत्ता पिशाब करते वक़्त उठता है और कोई रोई के गले फुर्ज (योनि) के अन्दर भरे इस तरह वह पूरी पाक होगी" (लुगातुल हदीस)

टिप्पणी: गैर मुक़ल्लिद का अजीब व गरीब नुस्खा है गैर मुक़ल्लिद तजरबा कर के देखें |

हैज़ (माहवारी) से पाकी के लिए खुशबू का प्रयोग

मारूफ गैर मुक़ल्लिद आलिम मौलवी अबुलहसन मोहि उद्दीन लिखते हैं:

"हा ईज़ा हैज़ से पाक हो कर गुस्ल कर ले फिर रोई की धज्जी के साथ खुशबू लगाकर शर्म गाह (योनि) के अन्दर रख ले" |

(फ़िक़ह मुहम्मदिया भाग 4 पेज २२)

टिप्पणी: जो क़ब्र को खुशबू लगाये वह क़ब्रपरस्त जो शर्मगाह को खुशबू लगाये वह शर्मगाह परस्त |

गैर मुक़ल्लिदीन के नजदीक सूअर की अज़मत (महीमा)

अल्लामा वहिदुज्ज़मा लिखते हैं:

सूअर पाक है सूअर की हड्डी, पुट्ठे,खुर, सींग और थोथनी सब पाक है"

(कन्जुल हक़ा इक़ पेज १३)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक सूअर माँ (माता) की तरह पाक है

अल्लामा सिद्दीक हसन खान लिखते हैं

सूअर के हराम होने से इसका नापाक होना हरगिज़ साबित नहीं होता जैसे कि माँ (माता) हराम है मगर नापाक नहीं" | (बदूरुल अहला पेज १६)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक सूअर का झूठा और कुत्ते का पिशाब पखाना पाक है

अल्लामा वहिदुज्ज़मा खान लिखते हैं:

"लोगों ने कुत्ते और सूअर और इनके झूठे के संबंध में विरोध किया ज्यादा राजिह (सबसे सही) यह है कि इनका झूठा पाक है ऐसे लोगों ने कुत्ते के पिशाब, पखाना के संबंध विरोध किया है हक़ बात यह है कि इनके नापाक होने पर कोई दलील नहीं" (नुज़ुलुल अबरार भाग 4 पेज ५०)

गधी, कुतिया और सोरनी का दूध गैर मुक़ल्लिदीन के लिए पाक है

मारुफ़ गैर मुक़ल्लिद आलिम नवाब सिद्दीक हसन खान लिखते हैं:

"गधी, कुतिया और सोरनी का दूध पाक है" | (बदूरुल अहला पेज १६)

टिप्पणी: मनी भी पाक और यह दूध भी पाक गैर पुक़ल्लिदीन का मिल्क शैक तैयार है |

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक हलाल जानवरों का पेशाब एवं पखाना पाक है

मुफ़्ती अब्दुस सत्तार इमामे फिर्का गु र बाए अहले हदीस फरमाते हैं:

"हलाल जानवारूं का पेशाब एवं पखाना पाक है जिस कपड़े पर लगा हो उस से नमाज़ पढ़नी दुरुस्त है नीज बतौरे अद्वियात (दवाई) का पर्योग करना दुरुस्त है (फ़तवा सत्तारिया भाग 4 पेज १०५)

टिप्पणी: यानी शर्बते ब नफ्शा ना मिला तो घोड़े का पेशाब पी लिया बिना डोल के बजाये लेद चबाली जवारिशे कमोनी के बजाये भैंसे का गोबर खा लिया |

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक घोड़ा हलाल है इसकी कुर्बानी (बलि) भी जरूरी है

नवाब नुरुल हसन खान लिखते हैं:

घोड़ा हलाल है | (अरफुल जादी पेज २३६)

मुफ़्ती अब्दुस्सत्तार साहब लिखते हैं:

घोड़े की कुर्बानी (बलि) करना भी साबित बल्कि जरूरी है |

(फ़तवा सत्तारिया भाग १ पेज १४७-१५२)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक गोह हलाल है

नवाब नुरुल हसन खान लिखते हैं:

"गोह (छिपकली नुमा एक जानवर) हलाल है" | (अरफुल जादी पेज २३६)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक खार पुश्त हलाल है

नवाब नुरुल हसन खान लिखते हैं:

खार पुश्त (काँटों वाला चूहा) खाना हलाल है" | (अरफुल जादी पेज २३६)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक बहरी (समुन्द्री) मुर्दा हलाल है

नवाब नुरुल हसन खान लिखते हैं:

"बहरी (समुन्द्री) मुर्दा हलाल है यानी मेंडक, सुअर कछवा, केकड़ा, साँप इसान आदि"

(अरफुल जादी पेज २३६)

गैर मुक़ल्लिदीन के नज़दीक खुश्की (सूखे) के वह जानवर हलाल हैं जिन में खून नहीं

नवाब सिद्दीक हसन खान लिखते हैं:

"खुश्की के वह तमाम जानवर हलाल हैं जिन में खून नहीं" (बदूरुल अहला पेज ३४८) यानी कीड़े मकोड़े, मक्खी, मच्छर छिपकली आदि |

अब्दुल्लाह रोपड़ी के क़ुरानी मुआरिफ़

गैर मुक़ल्लिदीन के बद नसीब फ़िरके ने अपनी जिन्सी आग बुझाने के लिए कुरान पाक जैसी पवित्र पुश्तक को भी न बख्शा | मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम और गैर मुक़ल्लिदीन के मुहद्दिस ज़ीशान हाफिज़ अब्दुल्लाह रोपड़ी ने कुरान के मुआरिफ (अनुवाद) बयान करते हुवे महिला और पुरुष के शर्मगाह की हीयत (रूपांतरण) और पुरूष व महिला के संभोग की कैफियत (स्थिति) जैसी खुराफात बयान करके अपने नामाए आमाल की सियाही में बढोतरी किया है आईये इनके पहचानने के तरीके के कुछ नामुमे देखें |
महिला के रहम (गर्भशय) की पहचान

गैर मुक़ल्लिदीन के मुहद्दिसे आज़म अब्दुल्लाह रोपड़ी फरमाते हैं:

“रहम (गर्भशय) की शक्ल लगभग सुराही की है रहम की गर्दन आम तौर पर छ: अंगुल से ग्यारह अंगुल उस महिला की होती है | संभोग करते वक़्त क़ज़ीब (लिंग) गर्दने रहम में दाखिल होती है और इस रास्ते मनी रहम में पहुँचती है अगर गर्दने रहम और क़ज़ीब लम्बाई में बराबर हूँ तो मनी वस्त (बीच) रहम में पहुँच जाती है वरना वरे रहती है”

(तंज़ीम यकुम मई १९३२ पेज ६ कालम नम्बर १)

टिप्पणी : क्या महिला को अपनी ग्यारह उन्गलियुं से शादी से पहले दुल्हा की आलत (लिंग) नाप लेना चाहिए कि मनी वस्त रहम (बीच) तक पहुंचा सके गा या नहीं ?
मनी रहम (गर्भशय) में पुहंचाने का दूसरा तरीका

हाफिज अब्दुल्लाह रोपड़ी लिखते हैं:

"और कई मर्तबा पुरुष की मनी ज्यादा दुफ्क़ (ज़ोर) के साथ निकले तो यह भी एक ज़रिया वस्त (बीच) में पहुँचने का है मगर यह ताक़त कुवते मर्दुमी (शक्ति पुरूष) पर मौकूफ (निर्भर) है"

(तंज़ीम यकुम मई १९३२ पेज ६ कालम नम्बर १)

गर्भशय का चित्र

हाफिज अब्दुल्लाह रोपड़ी लिखते हैं:

रहम मसाना (पिशाब की थैली / मुत्रशय) और रोदा मुस्तक़ीम (पखाना निकलने की अंतड़ी) के दरमियान पुट्ठे की तरह सादा रंग का गर्दन वाला एक अज़व (अंग) है जिस की शक्ल क़रीब क़रीब उलटी सुराही की बतलाया करते है मगर पूरा नक्शा उसका क़ुदरत ने खुद पुरूष के अन्दर रखा है | पुरूष अपनी आलत (लिंग) को उठाकर पैरूं के साथ लगा ले तो आलत मअ खुस्सितीने रहम का पूरा चित्र है

(तंज़ीम यकुम मई १९३२ पेज ६ कालम नम्बर १)

टिप्पणी : मौलाना सनाउल्लाह अम्र्तिसरी गैर मुक़ल्लिद इस पर टिप्पणी करते हैं "चित्र बना देते तो शायद लाभ होता" |

पुरूष और महिला की शर्म गाहों का मिलाप और करारे हमल (गर्भावस्था)

गैर मुक़ल्लिदीन के मुहद्दिस रोपड़ी साहब लिखते हैं:

"आलत (लिंग) ब मंजिला गर्दने रहम के है और खुस्सितीन बमंजिला पिछले रहम के हैं | पिछला हिस्सा रहम का नाफ (नाभी) के क़रीब से शुरू होता है और गर्दने की महिला की शर्मगाह में वाकअ (स्थित) होती है जैसे एक आस्तीन दोसरे आस्तीन में हो गर्दने रहम पर ज़ा इद (अधीक) गोश्त लगा होता है इसको रहम का मुंह कहते हैं और यह मुंह हमेशा बंद रहता है संभोग के वक़्त आलत (लिंग) के अन्दर जाने से खुलता है या जब शिशु का जन्म होता है | क़ुदरत ने रहम के मुंह में खुसूसियत के साथ लज्ज़त (आनंद) का इहसास रखा है अगर आलत इसको छूए तो दोनों मह्जूज़ (आनंदित) होते हैं ख़ासकर जब आलत और गर्दने रहम की लम्बाई यकसां (बराबर) होतो यह पुरुष एवं महिला की कमाले मुहब्बत (प्रेम) और ज्यादती लज्ज़त (आनंद की बढोतरी) और गर्भ ठहरने का जरिया है | रहम मनी का शाइक़ (शौकीन) है इसलिए संभोग के वक़्त रहम की जिस्मे गर्दन के तरफ माईल (इच्छुक) हो जाता है गर्दने रहम की तकरीबन छ: अंगुश्त (ऊँगली) महिला की होती है और ज्यादा से ज्यादह ग्यारह उन्गुश्त होती है" |

(तंज़ीम यकुम मई १९३२ पेज ६ कालम नम्बर १)

टिप्पणी: हाफिज रोपड़ी को वासी (वियापक अनुभाव) तजर्रबा है |

रहम का महले (स्थान) वकूअ

हाफिज अब्दुल्लाह रोपड़ी लिखते हैं:

मुंह रहम का महिला की शर्मगाह में पिशाब के सुराख़ से एक ऊँगली से कुछ कम पीछे होता है" (हवाला बाला)

टिप्पणी : हाफिज साहब ने खूब पैमाइश (माप) की है | {सनाउल्लाह}

अन्दर की कहानी

हाफिज अब्दुल्ला रोपड़ी गैर मुक़ल्लिद अन्दर की पूरी कहानी से वाकिफ हैं लिखते हैं:

"और गर्दन रहम की किसी महिला में दायें जानिब (ओर) और किसी में बाएं ओर मा इल होती है रहम के बहर की तरफ अगरचे ऐसी नर्म नहीं होती लेकिन बातिन इसका निहायत नर्म और, चिकन दार होता है ताकि आलत के दुखूल के समय दोनों मह्जूज़ (आनंदित)) हूँ नीज रबड़ की तरह खेंचने से खींच जाता है ताकि जितनी आलत दाखिल हो उतना ही बढ़ता जाये | कुंवारी औरतूं में रहम के मुंह पर कुछ रगें सी तनी होती हैं जो पहली सुहबत में फट जाती है इसको अज़ालाए बुकारत कहते हैं | (तंजीम अहले हदीस रोपड़ी पर्थम जून १९३२ पेज ३ कालम नंबर ३)

गैर मुक़ल्लिदीन के लिए संभोग करने का बहतरीन सूरत

गैर मुक़ल्लिदीन के मुहद्दिसे आज़म हाफिज अब्दुल्ला रोपड़ी लिखते हैं:

“और संभोग का बहतर सूरत यह है कि महिला चित लेटी हो और पुरूष ऊपर हो | महिला की रान उठाकर बहुत सी छेड़ छाड़ के बाद जब महिला की आँखों की रंगत बदल जाये और इसकी तबीअत में कमाले जोश आ जाये और पुरुष को अपनी ओर खींचे तो उस वक़्त दुखूल करे इससे पुरुष महिला का पानी एक्ठ्ठे निकल कर अमूमन गर्भ करार पाता है”

(अखबारे मुहम्मदी १५ जून १९३९ पेज नंबर १३ कालम नंबर ३)

टिप्पणी: गैर मुक़ल्लिदीन इस तरीके को गौर से पढ़ें और आइन्दा इसी तरीके से हमबिस्तरी (संभोग) करें |

क़ारी एन कराम: यह थे हाफिज अब्दुल्ला रोपड़ी के क़ुरानी मुआरिफ – मशहूर गैर मुक़ल्लिद आलिम मौलाना मुहम्मद जूना गाढ़ी ने भी यह मुआरिफ अपने “अखबारे मुहम्मदी” में नक़ल किये और उन्वान दिया “ अब्दुल्ला रोपड़ी एडिटर (संपादक) तंजीम के मुआरिफ क़ुरानी” इसे कोक शाश्तर कहें या लज्ज़तिन्निसा या तर्गीबे बद्कारी)   

मौलाना जूना गाढ़ी का उन मुआरिफे कुरानी पर टिप्पणी

इन मुआरिफे कुरानी पर टिप्पणी करते हुवे मारूफ (मशहूर) गैर मुक़ल्लिद आलिम शैख़ मुहम्मद जूना गाढ़ी गैर मुक़ल्लिद के मुफ़स्सिरे कुरान और मुहद्दिसे ज़ीशान हाफिज अब्दुल्ला रोपड़ी के बारे में लिखते हैं:

रोपड़ी ने मुआरिफे कुरानी बयान करते हुवे रंडी यूं और भड़वों का अरमान पूरा किया और तमाश बीनों के तमाम हथकंडे अदा किये |

(अखबारे मुहम्मदी १५ अप्रैल १९३९ पेज नंबर १३)

जूना गाढ़ी की मुहज्जब जुबान

कारी एन कराम मुहम्मद जूना गाढ़ी साहब की “ मुहज्ज़ब” भाषा का नमूना आप ने मुलाहेज़ा किया अफ़सोस कि आज सऊदी अरब में जो उर्दू तर्जुमा ए कुरान तकसीम (वितरण) हो रहा है वोह उन्ही मुहम्मद जूना गाढ़ी का है काश सऊदी हकुमत किसी मुत्तकी ( परहेजगार) आलिम का तर्जुमा ए कुरान शाए (पर्काशित) करने का अह्तामाम करती |
इख्तातामिया

क़रियें यह तो थे बतौर नमूना गैर मुक़ल्लिदीन की पुश्तक के चंद हवाले वरना अगर आप गैर मुक़ल्लिदीन की पुश्तकों को उठा कर देखें तो आप को बे शुमार हया सोज़ और गंदे मसाइल मिलेंगे और वोह भी कुरान व हदीस के नाम पर आखिर में हम कारी एन से पूछते हैं कि जितने गंदे और ह्या बखता मसाइल गैर मुक़ल्लिदीन ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाल्हू अलिहि वसल्लम से मनसूब किये हैं क्या किसी हिन्दू, सिख, इसाई, या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेश्वाऊँ (धार्मिक गुरु) से मनसूब किये हैं

या गैर मुक़ल्लिदीन उन सब पर सबक़त (बढ़त) ले गये हैं |

आखिर मैं हम अल्लाह तअला से दुआ करते हैं अल्लाह तअला गैर मुक़ल्लिदीन को हिदायत की दौलत से नवाजें और उम्मत को इस फितने से महफूज़ रखें ( आमीन)