async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6267723828905762'/> MASLAK E ALAHAZRAT ZINDABAAD: वो 8 मुसीबतें जो इंसान की जिंदगी बर्बाद कर देती है
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Wednesday, June 30, 2021

वो_आठ_मुसीबतें_जो_इंसान_की_ज़िंदगी* *#बर्बाद_कर_देती है

*#वो_आठ_मुसीबतें_जो_इंसान_की_ज़िंदगी*
                    *#बर्बाद_कर_देती है
कोई बंदा जब अल्लाह तआला से ग़ाफिल होता है...या कोई गुनाह करता है तो उस पर बहुत सी मुसीबतें आती हैं...
मगर इन मुसीबतों में से "आठ" बहुत ख़तरनाक हैं...
ये आठ मुसीबतें इंसान की ज़िंदगी बर्बाद कर देती हैं..
और उसकी आखिरत को भी खतरे में डाल देती हैं... इसलिए हमें सिखाया गया है कि:
           "हर दिन सुबह ओ शाम इन आठ मुसीबतों से बचने की दुआ मांगा करें-"
अजीब बात ये है कि.....
           शैतान इन आठ मुसीबतों के तीर हर सुबह और हर शाम हम पर छोड़ता है...
पस जो इंसान सुबह शाम अल्लाह तआला की पनाह में आ जाता है..वो बच जाता है-
और जो ये पनाह नहीं पकड़ता वो इन तीरों में से किसी एक या ज़्यादा तीरों का शिकार हो जाता है-
         वो आठ मुसीबतें ये हैं:
                                     (1) *’’اَلْھَمِّ ‘‘* 
यानी फिक्र में मुब्तिला होना-
                                     (2)*’’اَلْحَزَنِ‘‘* 
यानी गम में जकड़ा होना
                                    (3)*’’اَلْعَجَزِ‘‘*
यानी कम हिम्मती..बेकारी..महरूमी
                                  (4)*’’اَلْکَسَلِ‘‘* 
यानी सुस्ती... गफलत
                                   (5) *’’اَلْجُبْنِ‘‘* 
यानी बुज़दिली..खौफ..दिल का कमज़ोर होकर पिघलना
                                  (6)*’’اَلْبُخْلِ‘‘* 
यानी कंजूसी..हिर्स..लालच और माल के बारे में तंगदिली
                                (7) *’’غَلَبَۃِ الدَّیْنِ ‘‘* 
यानी क़र्ज़े में बुरी तरह फंस जाना कि निकलने की सूरत ही नज़र ना आए
                                (8) *’’قَھْرِالرِّجَالِ ‘‘* 
यानी लोगों के क़हर..गज़ब..गल्बे और ज़ुल्म का शिकार हो जाना-

                     *#क़ीमती_दुआ*
इन आठ मुसीबतों से हिफाज़त की दुआ कई अहादीस मुबारका में आई है.....
सही बुखारी में तो यहां तक आया है कि:
              "रसूलुल्लाह ﷺ कसरत के साथ ये दुआ मांगते थे.."
बस इसी से अहमियत का अंदाज़ा लगा लें- 
हुज़ूर अक़दस ﷺ मासूम थे- महफूज़ थे और शैतान के हर शर से पाक थे...मगर फिर भी इस दुआ की कसरत फरमाते...
अबू दाऊद की रिवायत में है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ दिन के वक़्त मस्जिद तशरीफ ले गए तो वहां अपने सहाबी हज़रत अबू उमामा رضی اللّٰہ عنہ को बैठा पाया पूछा कि:
             "नमाज़ का तो वक़्त नहीं फिर मस्जिद में कैसे बैठे हो?"
अर्ज़ किया:
            "तफक्कुरात (फिक्रों) ने घेर रखा है.. और क़र्ज़े में फंस चुका हूं..."
फ़रमाया:
           "ये कलिमात सुबह शाम पढ़ा करो...."
उन्होंने एहतिमाम फरमाया तो तफक्कुरात भी दूर हो गए और अल्लाह तआला ने सारा क़र्ज़ा भी उतार दिया-
ये दुआ अल्फाज़ की तक़दीम ताखीर और कुछ फर्क़ के साथ कई अहादीस में आई है-
सहाबा ए किराम ये दुआ एक दूसरे को क़ुरआन मजीद की आयात की तरह एहतिमाम से सिखाते थे...
दुआ के दो सेग़े यहां पेश किए जा रहे हैं...जो आसान लगे उसे अपना मामूल बना लें....

*(۱) اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْهَمِّ وَالْحَزَنِ، وَالْعَجْزِ وَالْكَسَلِ، وَالْبُخْلِ وَالْجُبْنِ ، وَضَلَعِ الدَّيْنِ، وَغَلَبَةِ الرِّجَالِ*

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ुबिका मिनल हम्मी वल हज़्नि वल अज्ज़ि वल कसलि वल बुख्लि वल जुब्नि व दलाइद दैनि व ग़लाबतिर रिजाल

*(۲) اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ الْهَمِّ وَالْحَزَنِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ الْعَجْزِ وَالْكَسَلِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ الْجُبْنِ وَالْبُخْلِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدَّيْنِ، وَقَهْرِ الرِّجَالِ*

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊज़ुबिका मिनल हम्मी वल हज़्नि व अऊज़ुबिका मिनल अज्ज़ि वल कसलि व अऊज़ुबिका मिनल जुब्नि वल बुख्लि व अऊज़ुबिका मिन ग़लाबतिद दैनि व क़हर्रि रिजाल

अल्फाज़ का तर्जुमा एक बार फिर इख्तिसार (छोटे रूप) के साथ समझ लें...

                                1️⃣ *’’اَلْھَمِّ‘‘* 
तफक्कुरात को कहते हैं....आगे की फिक्रें.. परेशानियां..फिज़ूल परेशान करने लम्बे मंसूबे और ख्यालात..
                                  2️⃣ *"اَلْحُزْنِ ‘‘* 
ग़म को कहते हैं...माज़ी (पास्ट) के वाक़िआत का सदमा और गम एक दम उभर कर दिल पर छा जाए... हालांकि हदीस शरीफ़ में आया है:
          "कोई बंदा ईमान की हक़ीक़त को उस वक़्त तक नहीं पा सकता जब तक उसे ये यक़ीन ना हो जाए कि जो कुछ उसे पहुंचा है वो उससे रह नहीं सकता था... और जो कुछ उससे रह गया वो उसे पहुंच नहीं सकता था-"(مسند احمد)
यानी जो नेमत मिल गई वो मिलना ही थी उससे ज़्यादा नहीं मिल सकती थी...जो तकलीफ आई वो आनी ही थी उससे बचा नहीं जा सकता था.. और जो कुछ नहीं मिला वो नहीं मिलना था ख्वाह मैं कुछ भी कर लेता..मतलब ये कि अल्लाह की तक़दीर पर ईमान और अल्लाह तआला की तक़दीर पर राज़ी होना...ये गम का इलाज है...
                             3️⃣ *’’اَلْعَجْزِ‘‘*
का मतलब अच्छे कामों और अच्छी नेमतों को पाने की ताक़त खो देना... इसमें कम हिम्मती भी आ जाती है...
                            4️⃣ *’’اَلْکَسَلِ‘‘*
का मतलब सुस्ती.. यानी इंसान के इरादे का कमज़ोर हो जाना.... मैं नहीं कर सकता..... मैं नहीं करता....
                            5️⃣ *’’اَلْجُبْنِ‘‘* 
बुज़दिली,मौत का डर, अपनी जान को बचाने की हर वक़्त फिक्र... अल्लाह तआला ने जान दी कि.....
            "उसको लगा कर जन्नत पाओ मगर हम हर वक़्त जान लगाने की बजाय जान बचाने की सोचते हैं..."
अल्लाह तआला ने जान दी ताकि हम उसे लगा कर...
            "दीन को ग़ल्बा दिलाएं,इस्लामी हुरमतों की हिफाज़त करें...उम्मते मुस्लिमा को इज़्ज़त दिलाएं..मगर हम जान बचाने के लिए हर ज़िल्लत बर्दाश्त करने पर तैयार हो जाएं...इसे "जबरन"कहते हैं-"
                                6️⃣ *"اَلْبُخْلِ‘‘* 
माल के बारे में कंजूसी करना...माल से फायदा ना उठाना...माल जमा करने और गिनने की हिर्स में मुब्तिला होकर...माल का नौकर और मुलाज़िम बन जाना... और माल के शरई और अख्लाक़ी हुक़ूक़ अदा ना करना...
                             7️⃣ *"ضَلَعِ الدَّیْنِ‘‘* 
क़र्ज़े का बुरी तरह मुसल्लत हो जाना... फ़िज़ूल क़र्ज़े लेने की आदत पड़ जाना..क़र्ज़े के बोझ तले दब जाना...
                 8️⃣ *"غَلَبَۃِ الرِّجَالِ یا قَہْرِالرِّجَالِ ‘‘* 
लोगों के हाथों ज़लील,रुस्वा,मग़लूब और मक़हूर (ग़ुस्से का शिकार) होना....

अल्लाह तआला मेरी और आप सबकी..इन आठ आफतों और तमाम आफतों से हिफाज़त फरमाए....
अल्लाह तआला मुझे और आप सबको इस मुबारक दुआ की बरकात अता फरमाए...
📿 *آمین یا ارحم الراحمین*
*لا الہ الا اللّٰہ، لا الہ الا اللّٰہ ،لا الہ الا اللّٰہ محمد رسول اللّٰہ*
*اللھم صل علی محمد والہ وصحبہ وبارک وسلم تسلیما کثیرا کثیرا*
*لا الہ الا اللّٰہ محمد رسول اللّٰہ*