भारत विविधाताओं से भरा देश है। यहां इतिहास के गर्त में कई रोचक कहानियां छिपी है। इन्हीं कहानियों में एक की खोज की है आगरा के वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर राजे ने। इतिहासकार राजे की एक नई कविता इन दिनों सुर्खियों में है।
ये कैसा इतिहास! इस किताब पर जब इतिहासकार से बात की गई तो उन्होंने कई चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे। उनका दावा था कि इस किताब में उन्होंने लिखा है शाहजहां की कैद का कारण बना ताजमहल। वहीं उन्होंने सिख गुरु और मुगल के बारे में भी इस किताब में लिखा है।
सिख गुरु और मुगल
वरिष्ठ इतिहासकार ने अपनी किताब में लिखा है कि इतिहास में पढ़ाया जाता है कि अपने पुत्र खुसरो द्वारा बगावत किए जाने पर उसको आशीर्वाद देने के फलस्वरूप मुगल सम्राट जहांगीर ने सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन सिंह का वध करवा दिया था। लेकिन, इतिहास के गहन अध्ययन व सिख धर्म की पुस्तकों को पढ़ने के बाद इस घटना का दूसरा ही स्वरूप सामने आता है। जिसके अनुसार जहांगीर की ओर से लाहौर में नियुक्त दीवान चंदू शाह नाम का व्यक्ति गुरु अर्जुन सिंह के पुत्र हरगोविंद से अपनी लड़की का विवाह करना चाहता था। लेकिन, गुरु अर्जुन सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे। चिढ़कर चन्दू शाह ने गुरु अर्जुन के विरुद्ध तरह तरह की कहानियां गढ़कर जहांगीर को भड़काया। चंदूशाह ने कहा कि गुरु अर्जुन ने विद्रोही शहजादे खुसरो को आशीर्वाद व सहायता प्रदान की थी। इस षडयंत्र में चंदूशाह के साथ बाबा पृथ्वीनाथ व बीरवल नाम कुद अन्य लोग शामिल हुए थे।
जहांगीर नशेबाज था
जहांगीर नशेबाज था। उसे इस बात पर विश्वास हो गया और उसने गुरु पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया और वे गिरफ्तार हो गए। चन्दूशाह ने जमानत पर छुड़वाकर उनके सम्मुख फिर से अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन, अर्जुन सिंह ने इसे ठुकरा दिया। सिखों के ग्रंथ पंथ प्रकाश के अनुसार गुरु को खौलते पानी में बैठाया। गर्म बालू से उनके शरीर को जलाया। उसके बाद उन्हें गौ चर्म में सीने की आज्ञा दी गई। गुरु ने अपना अंतकाल आया जानकर नदी में नहाने के बाद चन्दूशाह के विवाह संबंधी प्रस्ताव पर विचार करने को कहा। गुरु को किले के नीचे बह रही रावी नदी पर ले जाया गया। वहां उन्होंने नदी में छलांग लगा दी और फिर लौटे नहीं। चंन्दूशाह ने जहांगीर द्वारा गुरु पर लगाई गई जाने वाली रकम भरकर गुरु को अपने कब्जे में ले लिया था और मृत्यु तुल्य यातनाएं दीं थी। जिससे गुरु नदी में छलांग मारने को विवश हो गए थे। इस घटनाक्रम में गुरु अर्जुन की मृत्यु के लिए चन्दूशाह उत्तरदायी था लेकिन, बदनामी जहांगीर के हाथ आई।
तेगबहादुर और औरंगजेब
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने किताब में तेगबहादुर पर भी लिखा है। जिसमें कहा गया है कि गुरु हरकिशन की मृत्यु के बाद तेग बहादुर गुरु गद्दी पर बैठे लेकिन, कुछ कारणों से गुरु की गद्दी से वंचित गुरु हरराय का पुत्र रामराय जो अपने पिता गुरु हरराय के वक्त में किसी कार्य से मुगल दरबार में भेजा गया था ने गुरु तेगबहादुर के विरुद्ध औरंगजेब को भड़काया। फलस्वरूप धर्मान्ध औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया और अपने दरबार में पेश होने पर उनसे कोई करामात दिखाने या इस्लाम स्वीकार करने को कहा। 11 नवंबर 1675 ईं को गुरु तेगबहादुर ने चमत्कार दिखाने के नाम पर एक कागज के टुकड़े पर कुछ लिखकर अपनी गर्दन पर बांध लिया और कहा कि तलवार चलाएं। तलवार बेकार रहेगी। जलालुद्दीन नामक एक मुस्लिम ने चलवार चलाई और गुरु का सिर घड़ से अलग हो गया। गुरु वीर आत्मा थे। उन्हेांने धर्म देने के स्थान पर जान देना उचित समझा। इतिहासकार का कहना है कि इस विवरण से ये स्पष्ट है कि गुरु की जान औरंगजेब ने नहीं ली थी। औरंगजेब तो गुरु का धर्म लेना चाहता था, जिसमें वो असफल हो गया। वास्तव में गुरु की मौत एक दुर्घटना थी जो चमत्कार के नाम पर घटित हुई। लेकिन, इससे सिक्खों के साथ मुसलमानों के संबंध कटु से कटुतर हो गए।
स्रोत- पत्रिका न्यूज
ज़िक्र औरंगजेब का
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1.औरंगजेब जुझारू अजेय योद्धा था_15 साल की उम्र में पागल हाथी से लड़ाई हो या गुजरात का चार्ज, हर मुकाम पर शाहजहां की उम्मीद पर खरा उतरा. सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता वो सत्ता के शिखर तक पहुंचा
2. मुग़ल बादशाह शाहजहां बूढ़ा हो चला था और शासन पर ध्यान देने के बजाय बड़ी बड़ी इमारतें बनाने और अपने चमचों को दान दक्षिणा देने में सरकारी ख़जाने लुटा रहा था. ऐसे में उसके सबसे क़ाबिल शहज़ादे ने,उसको बा-ईज़्ज़त गद्दी से Retire करके मार्गदर्शक मंडल (लाल क़िला-आगरा) में बैठा दिया.
काका आडवाणी और पंडित मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक में देखकर ख़ुश होने वाले, शाहजहां की याद में टसुवे बहाते हैं.
3.औरंगजेब सबको एक ही लाठी से हाकँता था. हिंदू हो या मुसलमान सबको टैक्स के दायरे में लिया. लेकिन खुद अपने ऊपर सरकारी खजाने से न एक पैसा खर्च किया और न बर्बाद किया.
4. शाहजहां को Retire करने के बाद औरंगज़ेब ने देश के ख़ाली हो चुके ख़ज़ाने और डूबती हुई इकॉनमी को दुबारा खड़ा किया.
5. औरंगज़ेब ने 88साल की उम्र में अपनी Natural Death होने तक राज किया.
6. उस पर इल्ज़ाम है कि उसने अपने भाई दाराशिकोह को मरवाया. हालांकि औरंगजेब को हाथी से कुचलवाने की एक कोशिश दाराशिकोह भी कर चुका था.
दाराशिकोह, औरंगज़ेब को मारने ही फ़ौज लेके आया था. वो नहीं मरता, तो औरंगज़ेब मरता. राजतंत्र की सत्ता,सियासत का एक पहलु ये भी था कि भाई-भाई सिंहासन के लिये एक दूसरे से लड़ा करते ही थे. सम्राट अशोक और पांडवों ने भी राज के लिए अपने भाईयों को मारा मरवाया था ?
7. औरंगजेब में ईमानदारी इतनी थी कि कभी सरकारी खजाने को निजी खर्च के लिए हाथ न लगाया. अपने भोजन की एवज म़े वो टोपी बुनता, चक्की चलाता या अन्य छोटे-मोटे काम करता, फ्री का खाना हराम था उसके लिए!
8. वो इतना क़ाबिल हुकुमरान था कि इस बुढ़ापे में भी, उसने 49 सालों तक, देश पर सबसे लंबा राज किया. उसका शासन आजतक का भारत का सबसे बड़ा- (अफ़्ग़ानिस्तान से लेकर बर्मा और कश्मीर से लेकर केरल तक)- शासन था.
9.यह औरंगज़ेब का सफ़ल नेतृत्व और Administrative capabilities ही थीं, जो उसने अपने बाप दादा के अय्याशी भरे जीवन के बाद, डूबती सल्तनत को, दुबारा खड़ा किया.
10.. औरंगज़ेब के वक़्त भारत की GDP पूरी दुनियाँ की 25% के बराबर थी, जबकि भारत को लूटकर, जब अँग्रेज़ों ने 1947 में इसे छोड़ा, तब हमारी GDP, दुनियाँ की सिर्फ़ 4% ही बची थी!
****3 नवंबर 1618 ईस्वी में आलमगीर औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैहि की विलादत गुजरात के दाहोद में हुई थी
👉शाहजहां और मुमताज़ के तीसरे बेटे थे औरंगजेब, पैदाइश के वक़्त शाहजहां बादशाह नही थे वो एक सूबेदार के ओहदे पर मिलिट्री कैम्पेन में मशगूल रहते थे इस वजह से औरंगजेब की परवरिश दादी #नूरजहां के पास लाहौर में हुई। 26 मई 1628 को शाहजहां बादशाह बने तो औरंगजेब आगरा के किले में आ गए
और यही पर अरबी और फ़ारसी की तामील मुक़म्मल हुई, औरंगजेब हाफ़िज़ ए #क़ुरआन और मुहद्दिस भी थे, अपने तीनो भाइयो में सबसे तेज़ और कुशल योद्धा थे
**👉ऐक बार का वाक्या है
28 मई 1633 को हाथियों की लड़ाई के दौरान पागल हाथी के बीच औरंगजेब फस गए थे, तब खुद ही औरंगजेब ने अपनी जान बचाई थी, हाथी के सूंड के सहारे चढ़कर भाले से ज़ोरदार वार कर मार गिराया था। वहाँ उनके भाई मौज़ूद थे लेकिन औरंगजेब को बचाने की कोशिश नही की, औरंगजेब ने इसके बाद कहा: “अगर ये हाथी आज मुझे मार भी देता तो भी कोई ज़िल्लत की बात नही थी
मौत बरहक़ है एक दिन ये ज़िंदगी पर पर्दा डाल ही देगी मेरे भी और एक बादशाह पर भी लेकिन आज मेरे भाइयों ने मेरे साथ जो किया है वो बेहद शर्मनाक है”
👉ये वही दिन था जहां से औरंगजेब का कद आम जनता में अपने भाइयों से बहुत ऊंचा हो गया था
👉सिर्फ 16 साल की उम्र सैन्य कमांडर बने
👉और 17 साल की उम्र में बुंदेलखंड जीत लिया
👉एक के बाद एक फ़तह हासिल करते गए और हिंदुस्तान की सरहद को अफ़ग़ानिस्तान से म्यांमार तक फैला दिया
👉आलमगीर औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैहि हिंद के सबसे नेक, बहादुर, न्यायप्रिय बादशाह हुकमरान थे,,,आलमगीर औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़कीरी में बादशाहत की और अपनी दौर-ए-हुक़ूमत में फ़तवा-ए-आलमगीरी (इस्लामिक आईन) लागू किया आलमगीर औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैहि ने हिंद के सब से बड़े ख़ित्ते पर हुक़ूमत की और उनके शासन में हिंद सब से अधिक समृद्ध और शक्तिशाली था |
👉अबुल #मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर
बिन अल् आजाद
अबुल मुजफ्फर
#शाहब उद-दीन
मोहम्मद #खुर्रम
#शाहजहां’ बिन नूरुद्दीन सलीम
#जहांगीर बिन जलाल-उद्दीन
मोहम्मद बिन नसीरुद्दीन
#हुमायूं बिन ज़हिर उद-दिन
मुहम्मद #बाबर
बिन उमर शेख़ #मिर्ज़ा ने
👉हिंद पर 49 साल यानी 1658 से 1707 तक #हुक़ूमत की
88 साल की उम्र यानी 3 मार्च 1707 ईस्वी में आप की वफ़ात हुई
आलमगीर औरंगज़ेब रहमतुल्लाह अलैहि पर इलज़ाम लगाया जाता है कि वो हिंदू विरोधी थे,,,लेकिन ये इलज़ाम सरासर झूठा है
👉और इस की तस्दीक़ इस से भी हो जाती है कि औरंगजेब के शासनकाल में सबसे ज्यादा हिंदू #प्रशासन का हिस्सा थे
#ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि औरंगजेब के पिता शाहजहां के शासनकाल में सेना के विभिन्न पदों, दरबार के दूसरे अहम पदों
और विभिन्न भौगोलिक #प्रशासनिक इकाइयों में हिंदुओं की तादाद 24 फीसदी थी
जो औरंगजेब के समय में 33 फीसदी तक हो गई थी
👉#इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि एक समय खुद शिवाजी भी औरंगजेब की सेना में मनसबदार थे |
औरंगज़ेब का दौर-ए-हुक़ूमत हिंदी मुसलमानों के उरूज की इंतिहा थी |
आलमगीर औरंगज़ेब की #वफ़ात के बाद से ही हिंदी मुसलमानों का ज़वाल शुरू हो गया था
👉एक उम्मीद की किरण हज़रत टीपू सुल्तान रहमतुल्लाह अलैहि में नज़र आई थी
लेकिन 18 वीं सदी के अंत में 1799 में #टीपूसुल्तान की शहादत पर वो किरण भी अंधेरों में गुम हो गई |
‘#इक़बाल’ ने फ़रमाया है :
दरमियान-ए-कार ज़ार-ए-कुफ्र-ओ-दीं
तर्कश-ए-मा रा खदंग-ए-आख़री
यानी कुफ्र और दीन की #जंग के दरमियान वो यानी आलमगीर औरंगज़ेब हमारे तर्कश का आखिर तीर था
#मुसलमान शासनकाल इतिहास में सुनहरे अलफाजों में लिखा गया है
#माशाअल्लाह
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मेरा नाम औरंगजेब है मैं हमेशा संगीन मुजरिम करार दिया गया, क्यूंकि मैं दीने इस्लाम पर चलता था क्योंकि मैंने देश-हित के नाम पे दारा को मरवा दिया,..क्योंकि मेरा भाई हमेशा मेरे खिलाफ़ षड्यंत्र रचता था क्योंकि मैंने अपने बीमार बाप को षड्यंत्रकारियों से दूर किया (आपकी भाषा में कैद किया) और अपनी प्यारी बहन को उनकी देखभाल के लिए कहा क्योंकि मैंने अपने बाप की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए ६ महीने में कुरआन हिफ्ज किया क्योंकि मैंने शिवाजी को उसका मनचाहा मनसब (ओहदा, पद) नहीं दिया और वो लुटेरा बन गया।क्योंकि मैं इंसाफ़ पसंद था क्योंकि मैंने जनता की खून पसीने की कमाई से ताजमहल बनाने को गलत कहा क्यूंकि मेरे बाप ने मेरे साथ नइंसाफी की,क्यूंकि मेरे हरम में रानियाँ नहीं हैं, जितनी मेरे पूरवज शौक़ से रखा करते थे….. क्यूंकि मैंने कभी सरकारी माल से अपना पेट नहीं भरा, क्योंकि मैंने जनता के सेवक की तरह राज किया क्यूंकि मैं अपने साम्राज्य को काबुल से लेकर कन्याकुमारी तक फैला देना चाहता हूँ क्योंकि मैं हिंदुस्तान को दारूल इस्लाम बना देना चाहता हूं क्यूंकि मैं अपनी बिमारी की हालत में भी देश की इत्तिहाद के लिए दौड़ता रहता हूँ क्योंकि मेरे सैनिक ने गुरु तेगबहादुर को मार दिया क्योंकि मैंने गैरमुस्लिमो अमीरों पर जिज्या (१.२५%) कर लगाया क्योंकि मैंने मुस्लिमों पर सदका, जकात (२.५%) फितरा कर लगाए क्योंकि क्यूंकि पहली बार जुनुबी भारत में मैंने एक बेहद ताक़तवर मालगुजारी का बन्दोबस्त किया . क्यूंकि मैंने ताजमहल,हवा महल, तख्ते ताऊस बनवाकर अपनी रियाया के खून पसीने की कमाई को अपनी अय्याशियों और शौक़ में बर्बाद नहीं कर सकता हूँ.. क्यूंकि मुझे चीनी मिटटी के बर्तन, करोंदे और सुपारी से प्यार है क्यूंकि मैं हवाई, आडंबर से भरे, और चाटुकारी अदब से नफरत करता हूँ, क्यूंकि मैंने फारसी का एक ऐसा लुगत तैयार करवाया जिससे मैं हिंदी ज़बान सीख सकूं क्यूंकि मैंने मथुरा और बनारस के मंदिरों को बर्बाद करवा दिया क्योंकि मैंने उस मंदिर को तुड़वा दिया जिसमे लड़की (रानी) का बलात्कार हुआ क्यूंकि मैंने गोलकुंडा की मस्जिद को तबाह कर डाला क्यूंकि मैंने सोमेश्वर नाथ का महादेव मंदिर, कशी विश्वनाथ मंदिर, बालाजी का मंदिर, उमानंद का मंदिर, जैन मंदिर, शुमाली हिंदुस्तान के गुरुद्वारों को अपनी जागीरें दान की हैं…क्यूंकि मैंने मुहर्रम खान से कहा है की दुनियावी मामलों में मज़हब का कोई दखल नहीं होता और सुलतान की आँखों में इन्साफ सबसे ऊपर होता है…क्यूंकि मीर हसन से मैंने कहा है कि ब्रह्मपुरी पुँराना नाम था…उसे इस्लामपुरी में तब्दील कर तुमने गलत किया है…क्यूंकि मैंने उस गरीब ब्रह्मण के चोरी हुए शिवलिंग को अपने कड़े फरमान ज़ारी कर ढूंढवा कर दिया…
क्योंकि मैंने बनारस के पंडित की बेटी की इज़्ज़त की हिफाजत की और अपने अय्याश गवर्नर को मार दिया क्यूंकि बनारस के उस गोसाईं को परेशां करने वाले मुसलमानों के खिलाफ मैंने सख्त फरमान दिए हैं..
इन सारे जुर्मों का मैं ऐतराफ तो करता हूँ…क्योंकि मैं अंग्रेजो को पसंद नहीं था क्योंकि मैं मुस्लिम था लेकिन कह देता हूँ…मुझे मुजरिम सिर्फ इसलिए करार दिया गया क्यूंकि मैं अकबर नहीं हूँ…. मेरा नाम औरंगजेब है…
इतिहास के साथ बलात्कार :- खंड-3, औरंगज़ेब खंड-1
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4177741848947648&id=100001356218279
खंड-2
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4180665675321932&id=100001356218279
इतिहासकारों ने महमूद गजनबी के बाद सबसे अधिक पक्षपात मुगल शहंशाह औरंगज़ेब के साथ किया जिनका इस देश पर 50 साल का मज़बूत और एकछत्र शासन था।
उन्होंने ही एक राष्ट्र के रूप में भारत की सीमा का सार्वाधिक विस्तार अफगानिस्तान से लेकर वर्मा तक किया। पर केवल उनके धार्मिक होने के कारण उनके राज्य के हर फैसले को सांप्रदायिक नज़रिये से देखा गया।
उनकी छवि हिन्दूकुश बनाने के लिए 1•5 मन जनेऊ तौलकर ही रात में उनके खाना खाने की बात फैलाई गयी। और डरपोक लोगों ने तर्क और तथ्य पर इस बात को परखे बिना यकीन भी कर लिया कि
“औरंगज़ेब जब तक 1•5 मन जनेऊ नहीं तौल लेता था रात का खाना नहीं खाता था”
जबकि यह बहुत साधारण गणित थी कि 1 मन 40 किलो ग्राम का होता है तो 1•5 मन जनेऊ हुआ 60 किलोग्राम जनेऊ अर्थात 60,000 ग्राम जनेऊ।
सामान्यतः एक ब्राम्हणधारी जनेऊ अधिकतम 2 ग्राम का होता है तो 60,000 ग्राम जनेऊ तौलने के लिए 30 हज़ार ब्राम्हण की प्रतिदिन हत्या करते रहे होंगे औरंगज़ेब।
अर्थात 1 महीने में 30,000×30=9 लाख ब्राम्हण
अर्थात 1 साल में 900000×12= 1करोड़ 8 लाख ब्राम्हण
औरंगज़ेब ने भारत पर 50 वर्ष शासन किया तो 50 वर्ष में 10800000×50= 54 करोड़ ब्राम्हण मारे गये होंगे जिनका उस इतिहास में कोई उल्लेख नहीं जो कई हजार साल पहले कलिंगा युद्ध में अशोक के द्वारा की गयी 5 लाख लोगों की हत्या का ज़िक्र करता है।
ऐसे ही औरंगज़ेब पर हिन्दुओं पर जजिया कर लगाने की बात को गलत ढंग से प्रचारित किया गया और यह छिपा दिया गया कि औरंगज़ेब 6 तरीके का कर मुसलमानों से लेता था।
खैरात, ज़कात, फितरा, सदका इत्यादि जैसे 6 कर यदि औरंगज़ेब हिन्दुओं पर “एक राज्य एक कर” की नीति बनाकर थोप देता तो दरअसल यह उसका किया गया अन्याय होता कि वह किसी और धर्म की व्यवस्था को दूसरे धर्म पर जबरन थोप दिया।
यदि अपने राज्य के हिन्दुओं पर इस्लामिक व्यवस्था थोप भी दिया होता तो कोई उसका क्या कर लेता ? पर नहीं , उसने इसके अतिरिक्त हिन्दुओं के लिए एक अलग कर व्यवस्था “जज़िया” लागू किया और मंदिर के पुजारियों समेत तमाम अन्य ब्राम्हणों को इस कर व्यवस्था से मुक्त रखा।
मगर जजिया कर को इतिहासकारों ने आत्याचार का प्रतीक बना दिया।
ऐसे ही उनको अपने भाईयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त करने वाला बताया गया , पिता शाहजहाँ को कैद कर लेने वाला बताया गया।
यह छुपा लिया गया कि उनके पिता, उनकी बहन जहाँआरा और भाईयों ने मिल कर बचपन में ही उनकी हत्या की साजिश रची थी, और दक्षिण से उनको पिता की बिमारी के बहाने बुलावा भेजा और घात लगाकर जमुना नदी के तट पर हमला कर दिया जिसमें औरंगज़ेब को जीत मिली और उनके भाई मारे गये।
यह भी छिपा दिया गया कि अपने पिता को उन्होंने आगरा के लालकिला की सबसे बेहतरीन हवादार जगह रखा जहाँ से ताजमहल साफ दिखाई देता था, शाहजहाँ की देखभाल के लिए नौकरों की जगह अपनी बहन “जहाँआरा” को नियुक्त किया।
इस तथ्य को भी भुला दिया गया कि प्राचीन और मध्ययुग में सत्ता और सिंहासन पर कब्ज़ा सदैव ही रक्तरंजित रहा है, और प्राचीन तथा मध्ययुग ही क्युँ ? आधुनिक युग में नेपाल की राजशाही एक ताज़ा उदाहरण है जब एक राजकुमार पारस ने 1 जून 2001को सिंहासन पर बैठे राजा के सारे परिवार की हत्या करके सत्ता और सिंहासन पर काबिज़ होने की कोशिश की।
https://www.bhaskar.com/…/latest-rani-news-061504…
इसके कारण में आपको “धर्म” नहीं मिलेगा क्युँकि मरने और मारने वाले दोनों का धर्म इस्लाम नहीं है। रक्तरंजित तख्तापलट , साम्राज्य विस्तार या सत्ता हस्तानांतरण के लिए युद्ध में “धर्म” तभी एक कारण होगा जब इनमें कहीं ना कहीं “इस्लाम” और “मुसलमान” विजेता होगा।
मुसलमान बादशाह औरंगजेब जंग जीतकर सिंहासन पर बैठा तो वह ज़ालिम, हिन्दुकुश और कट्टर था जो अपने लोगों को मारकर सिंहासन पर बैठा, और मुसलमान बादशाह यदि हार गया तो यह जीतने वाले हिन्दू राजा का पराक्रम और शौर्य की गाथा होगी।
शाहजहाँ और उनके बेटों की हकीकत जानने के लिए आपको यदुनाथ सरकार की पुस्तक “हिस्ट्री आफ औरंगज़ेब” के पृष्ठ संख्या 9 से 11 पढ़ना पड़ेगा।
https://epustakalay.com/…/6626-aurangzeb-by-jadunath…/
इसी इतिहास को दो जगह से और प्रमाणित किया जा सकता है, ऐनी मैरी मिशेल की पुस्तक “द एम्पायर आफ ग्रेट मुगल्स” में दारा शिकोह और औरंगज़ेब के संबन्धों का स्पष्ट चित्रण है, यही नहीं इस घटना का ज़िक्र शाहजहाँ के दरबार के कवि अबू तालिब ख़ाँ ने अपनी कविताओं में किया है। आप उसे भी पढ़ सकते हैं। हुआ यूँ कि चार बेटों दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब, मुराद बख्श के पिता शाहजहाँ को हाथियों की लड़ाई देखने का बहुत शौक था, लालकिले के सामने से लेकर इत्मादुद्दौला तक ताजमहल के पीछे का पूरा मैदान इसी काम में प्रयोग किया जाता था और शाहजहाँ लालकिले में बैठ कर यह खूनी खेल देखा करता था। इसे इतिहासकारों ने “हाथीघाट का इतिहास” कहा है। दरअसल अपने सबसे चहेते बेटे “दारा शिकोह” की शादी का जश्न मनाने के लिए 28 मई 1633 को लालकिले की परीखा के नीचे “हाथी युद्ध” का आयोजन हुआ। इसमें दो हाथियों “सुधाकर” और “सूरत सुंदर” का युद्ध हुआ। 18 वर्षीय दारा शिकोह की यह साजिश थी कि इसी युद्ध में 14 वर्षीय भाई “औरंगज़ेब” की हत्या करा दी जाय और उसने “सुधाकर” हाथी को शराब पिला दी।
युद्ध में यह हाथी “सुधाकर” भड़क गया और घोड़े पर बैठे “औरंगज़ेब” की ओर के लोगों को रौदने लगा। और फिर उस हाथी की चपेट में 14 वर्षीय “औरंगज़ेब” और शाहजहाँ के दो शेष बेटे भी आ गये , जो खतरा देख भाग खड़े हुए और “औरंगज़ेब” लोगों को बचाने के लिए उस हाथी से भिड़ गये और तलवार से हाथी के साथ युद्ध करने लगे। इसी सबके बीच मौका देखकर शाहजहाँ के दूसरे सबसे बड़े बेटे शाह सुजा ने हाथी की आँख में भाला मारा जिससे हाथी नीचे गिर गया।और इस तरह औरंगज़ेब हाथी और दारा शिकोह की साजिश से अपने पराक्रम से जीत गये। पिता शाहजहाँ ने आगे बढ़कर औरंगज़ेब को गले लगा लिया। फिर डांटा, ‘तुम भी भागे क्यों नहीं ?औरंगजेब ने जवाब दिया- मर भी जाता, तो कोई शर्म की बात नहीं थी। मौत तो हर किसी को आनी है। शर्म तो मेरे उन भाइयों को आनी चाहिए, जिस तरह वे भागे।
मज़ेदार बात यह है कि अपनों को मारकर सत्ता पाने का औरंगजेब पर आरोप उस देश में लगा जिसके सामने “महाभारत” अपनों के बीच युद्ध का पूरा इतिहास लिए हुए है।
जहाँ चचाजात और सौतेले भाई एक दूसरे से युद्ध करते हैं, अपनी भाभी को जुए में जीत कर जंघा पर बिठाते हैं, जहाँ कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि ‘अर्जुन युद्ध में कोई भाई और सखा नहीं होता, उठाओ गांडीव और वार करो”।उस देश में जिस देश में पिता तुल्य भीष्म पितामह शिखंडी की आड़ लेकर बड़े बड़े धनुर्धर द्वारा धोखे से मार दिए जाते हैं।उस देश में औरंगजेब के इक्का दुक्का शासकीय निर्णय सांप्रदायिक घोषित करके उनको देश का सबसे बड़ा खलनायक बना दिया गया।इसका परिणाम यह निकला कि जिस इंदिरा गाँधी ने स्वर्ण मंदिर को ध्वस्त कर दिया उस इंदिरा गाँधी के सिख समर्थकों की फौज तो आपको मिल जाएगी पर औरंगजेब को गाली ना देता एक सिख नहीं मिलेगा।औरंगजेब को इतिहाकारों ने खलनायक बनाने के चक्कर में मंदिरों को तोड़ने वाला बताया पर उनकी ऐसे ही निर्णय के आधार पर तोड़ी गोलकुंडा मस्जिद छुपा दी।एक बनारस का मंदिर तो दिखाया पर औरंगजेब की मदद से बने चित्रकूट और इलाहाबाद के तमाम मंदिर इतिहास में छिपा दिए गये।यह इतिहास भी छिपा दिया गया कि एक गरीब ब्राम्हण की बेटी की इज्जत बचाने वह बनारस भेस बदलकर आए और अपने सेनापति आसफ अली खान को हाथियों से चिरवा दिया, यह भी भुला दिया कि उसी स्थान पर घनेड़ा की मस्जिद बना कर पंडितों ने औरंगजेब को उपहार स्वरूप दे दिया।इतिहासकारों ने उसे इस्लामिक कट्टर धर्मांधता दिखाने के चक्कर मे यह भी भुला दिया कि उनके दरबार में 50% से अधिक महत्वपुर्ण पदों पर ब्राम्हण विराजमान थे।