ख्वाजा मॊईनुद्दिन चिश्ती अजमेरी
रहमतुल्लाह अलैह का मकाम
ख्वाजा गरीब नवाज़ के पिरो मर्शिद
हज़रत ख्वाजा ऊसमान हारुनी
रहमतुल्लाह अलैह
अपने
मुरीदों और ख्वाजा गरीब नवाज़ को लेकर
कही जा रहे थे कि ख्वाजा उसमान हारुनी
रहमतुल्लाह अलैह को
एक वीरान बुतखाना नज़र आया
तो आपने ख्वाजा गरीब नवाज़ और दिगर
मुरीदो से फरमाया कि
तुम लोग जब तक मै ना बोलू
कही मत जाना यही खरे रहना
मै इस बुतखाने मे से आता हुं
और इतना कह कर आप उस
बुतखाने मे जाकर अल्लाह कि ईबादत मे
लग गए
और
इस तरह चालीस दिन गुज़र गए
ईधर आपके तमाम मुरीदिन चले गये
सिर्फ ख्वाजा गरीब नवाज़ रह गयें
और अपने पिरो मुर्शिद कि
हुक्म कि फरमा बरदारी कि
जब चालीस दिन बाद
आप बुतखाने से बाहर आए
और ख्वाजा गरीब नवाज़ से पुछा
के सारे मुरीदिन कहा गयें
तो
जवाब दिया वो सब चले गयें
आपने कहा तुम क्यो नही गए
तो ख्वाजा गरीब नवाज़ ने कहा
आपने हुक्म दिया था कि जब तक
मै ना बोलूं मत जाना
इसलिये मैं कहीं नही गया
सिर्फ रफे हाजत के सिवा,
आप बहुत खुश हुवे और अपना
कुर्ता उतार के दिया कि इसे धोकर ले आओ
और
इस कुर्ते का पानी किसी ऐसी जगह डालना
जहाँ किसी मखलुक का पैर ना परे
फिर हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने
कुर्ता धोकर उसका पानी पी लीया
और जब कुर्ता सुखा कर
अपने पिरो मुर्शीद कि बारगाह मे ले गए
तो ख्वाजा उसमान हारुनी रहमतुल्लाह
अलैह ने पुछा
कि इस के पानी का क्या किया
तो ख्वाजा गरीब नवाज़ ने कहा
कि मुझे कोई ऐसी जगह
नज़र नही आई जहा
किसी मखलूक का पैर ना परे
इसलिये मेने उस पानी को पि लिया,
ये सुनकर ख्वाजा उसमान हारूनी ने कहा
इस कुर्ते के ऊपर
रहमते ईलाही कि धुल थी
और इस कुर्ते को धोकर
तुम ने जिस कदर पानी पिया है
उस कदर मेरा ईल्म
तुम्हारे अन्दर आ गया है,
फिर ख्वाजा उसमान हारुनी रहमतुल्लाह
अलैह ने
ख्वाजा गरीब नवाज़ से कहा
कि आसमान कि तरफ देखो
आपने देखा तो,
ख्वाजा उसमान हारूनी ने पुछा
क्या नज़र आ रहा है?
ख्वाजा गरीब नवाज़ ने कहा
अर्शे आज़म नज़र आ रहा है,
फिर ख्वाजा उसमान हारूनी ने कहा
ज़मिन पर देखो,
ख्वाजा गरीब नवाज़ ने देखा
तो ख्वाजा उसमान हारुनी ने पुछा
क्या नज़र आ रहा है?
जवाब दिया सातवी ज़मिन
तहतुस्सरा नज़र आ रहा है
फिर ख्वाजा उसमान हारूनी ने
अपना हाथ ऊठाया और कहा
मेरी हथेली मे देखो
क्या नज़र आ रहा है?
ख्वाजा गरीब नवाज़ ने देख कर कहा
अठ्ठाराह हज़ार मखलुक नज़र आ रही है
तब ख्वाजा उसमान हारूनी
रहमतुल्लाह अलैह ने
ख्वाजा गरीब नवाज़ से कहा
अब तुम मुकम्मल हो गये हो
जाओ तमाम मखलुक को
हिदायत का रास्ता दिखाओ,
(फैजाने चिश्त सफा २५७)
फलसफा -ये हमारे बुजुर्गो का मकाम है
उनकी नज़रो से कुछ छुपा हुवा नही है
वो अपने पिरो मुर्शिद कि
खिदमत अदब और हुक्म कि
फरमाबरदारी करके
अल्लाह और उसके रसूल कि
ईताअत करके
बरे मकाम पर फाईज़ हो गयें,
लेकिन
कुछ जाहिल लोग अपनी बदबख्ती कि
वजह से औलिया ओ कि शान मे
गुस्ताखी करके अपनी ना समझी
और बे अक्ली से उनके मकाम को
नही समझते
अगर दिल मे मोहब्बत और अदब होता
तो ज़रुर समझ जाते,
दुआ -या अल्लाह हमे तेरे औलिया ओ कि
सही अदब व ताज़ीम करने कि
तौफिक अता फरमा
"आमीन "