🔊 *एक* *बार* *तो* *सोंचो* 🚼
〽 अहबाबे अहले सुन्नत बिलखुसुस अज़हरी दोस्तों एक बार ज़रा दिल की गहराई से सोंचो
के अज़हरी हशमती इख़्तलाफ को तक़रीबन 1 साल 4 माह हो चुके इस बात पर के *मौलवी* *ततहीर* की इबारतों मे *गुस्ताखी* व *गुमराही* है या नही
1⃣ इस मामले मे *ख़ानक़ाह* *ए हशमतिया* का जो मोकिफ है वो अज़हर मिनश्श्मस और ज़माना ज़द मश्हूर है
ख़ानक़ाह ए हशमतिया अल ऐलान डंके की चोट पर कह रही है के *मौलवी* *ततहीर* की इबारतों मे *तौहीन* *ए* *नबी* सल्ल्ललाहो अलैहि वसल्लम और *तौहीन* *ए सहाबा* *ए* *किराम* *व *औलिया** *ए इज़ाम* *है* ( रिज़्वानुल्लहि तआला अजमईन) और गुमराह कुन इबारतें हैं
2⃣ *अब* *अज़हरी* *टोला* ततहीर की हिमायत पर है और ततहीर की वकालत मे कहता है के हाँ ततहीर की बआज़ इबारतें क़ाबिल ए हज़फ़ इबारतें हैं और ताबीर मे खता हुई और अवाम के लिए गुमराही का सवब हों सकती हैं और वहाबी वगैरह को ख़ुशी का मोका दे सकती हैं और उसकी किताबों से जब तक ऐसी इबारतें न निकाल दी जाएं तब तक उसकी किताबों को कलअदुम समझा जाए
➡ मगर इसमे भी *कोई* *खुलासा* *नही* *कोई* *निशान* दही नही के मौलवी ततहीर की कौन कौन सी इबारतें किस किताब मे क़ाबिल हज़फ़ हैं और कौन कौन सी इबारतों मे ताबीर मे खता हुई है और कौन कौन सी इबारतें ऐसी हैं जिनको पढ़कर सुन्नी अवाम गुमराही मे पड सकती हैं और कौन कौन सी इबारत वहाबी मज़हब के मुताबिकत करती हैं जिनसे वहाबियों को ख़ुशी का मौक़ा इनायत करेंगी कोई निशान दही नही की गई कोई खुलासा नही किया और न ही किताबों पर बेन लगाया गया
3⃣ पहली चीज़ गोर करने की ये है के पहले पहल तो अज़हरी टोला डंके की चोंट पर कहता रहा के मौलवी ततहीर की इबारतों मे कोई तौहीन कोई गलत बात नही फिर कुछ दिनों बाद माना के क़ाबिल हज़फ़ इबारतें है और उनमे ताबीर मे खता हुई है और कई दिनों तक इसी पर ताल ठोंकते रहे फिर गिरावां झांका और कहने लगे नही नही क़ाबिल हज़फ़ नही ताबीर मे खता नही बल्के क़ाबिल ए तौबा इबारतें हैं और एक दर्जन मौलवियों की फौरन मीटिंग बुलाई गई और पूरा हुक्म व फैसला मौलवी ततहीर की हिमायत मे ही किया गया फिर ऐसी तौबा कराई गई के शायद ऐसी तौबा इससे पहले न ज़मीन ने देखी होगी न आसमान ने तौबा क्या फ़क़त तौबा के नाम पर खाना पूर्ति ही की गई वही कहावत के सांप के मुंह मे छछूंदर के मिसदाक़ निगलें तो आफ़त उगल दे तो मुसीबत के मौलवी ततहीर पर अगर सही हुक्म ए शरअ लगा दिया जाए तो पीर जी पर आफ़त अगर खुल कर हिमायत की जाए तो पीर जी पर बड़ी मुसीबत अब क्या किया जाए के न जीने दिया जाए न मरने दिया जाए के मिसदाक काम किया जाए और हुआ भी यही के ततहीर को साफ बचा भी लिया और सुन्नी अवाम को झूटी तसल्ली भी दे दी के *न सांप* मरा न टूटी *लाठी* चित भी मेरी पुट भी मेरी और अंका भी मेरी *न खंज़र* पे कोई छींट *न *दामन** पर कोई दाग वाह जी तुम क़त्ल करो हो के करामत
4⃣ अज़हरी दोस्तों दूसरी बात गोर करने की ये है के जब से ये मामला उठा है तब से अज़हरी टोला आए दिन अपना मोकिफ बदलता रहा है मगर ख़ानक़ाह ए हशमतिया शुरू दिन ही से अपने एक ही मौक़िफ़ पर अटल और क़ाइम है
5⃣ तीसरी बात गौर करने की ये है के अगर अज़हरी टोला के नज़दीक मौलवी ततहीर और उसकी इबारतों मे कोई खामी कोई तौहीन नही और ख़ानक़ाह ए हशमतिया का मौक़िफ़ गलत है तो क्या वजह है अभी तक अज़हरी टोला की तरफ से खुलकर फैसला क्यों नही दिया गया के मौलवी ततहीर पर कोई हुक्म आइद नही होगा और ख़ानक़ाह ए हशमतिया ने मौलवी ततहीर पर गलत इलज़ाम उठाया है इस लिए उस पर फूलां फूलां हुक्म आइद होता है क्यों नही दिया गया
👉 इससे मालूम होता है के ख़ानक़ाह ए हशमतिया का मौक़िफ़ सही है और उसने मौलवी ततहीर की इबारतों पर जो जो ऐतराज़ किए हैं वोह सब ऐतराज़ भी सही हैं वरना अगर ख़ानक़ाह ए हशमतिया का मोकिफ गलत है तो उनपर हुक्म ए शरअ आइद करो और अगर सही है तो मौलवी ततहीर पर सही तौर पर हुक्म ए शरअ क़ाइम करो और ऐलान करो के ख़ानक़ाह ए हशमतिया इस मामले मे हक़ व जानिब है
👉 ख़ैर तुमसे तो उम्मीद नही के तुम बिला तफरीक व इम्तेयाज के हुक्म शरअ बताओगे मगर तुम्हारी ख़ामोशी और अहले हक़ व इंसाफ़ खुद फैसला फरमा देंगे के ख़ानक़ाह ए हशमतिया का मौक़िफ़ सही और हक़ ब जानिब है
👉 तो अज़हरी दोस्तों आप इस पुरे मेटर पर बार बार गौर व फ़िक्र करना के मौलवी ततहीर के मामले मे अभी तक अज़हरी टोला का क्या किरदार रहा है और ख़ानक़ाह ए हशमतिया का क्या अंदाज़ रहा है
सगे हशमतिया हाफ़िज़ अब्दुल हमीद खान हशमती