async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6267723828905762'/> MASLAK E ALAHAZRAT ZINDABAAD

Monday, December 6, 2021

नसबंदी कराना कैसा?

सवाल----- नसबंदी कराना कैसा है,

 अल जवाब----- पैदाइश को रोकने के लिए नसबंदी कराना हराम है, ख़्वाह औरत की हो या मर्द की हरगिज़ जाइज़ नहीं, बल्कि हराम है, क्योंकि इसमें अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की पैदा की हुई चीज़ों का बदलना है,

अल्लाह तआला फ़रमाता है,

तर्जमा-----शैतान बोला मैं उनको बहकाऊंगा तो वह अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ों को बदलेंगे,

( पारा 5, सूरह निसा, आयत 119)

और इसी के तहत तफ़्सीरे सावी में है,

من ذالك تغييرالجسم،

तर्जमा----- इसी में से जिस्म का बदलना है,

( तफ़्सीरे सावी जिल्द 1 सफ़ह 231)

और तफ़्सीरे कबीर में है,

अल्लाह ताला की पैदा करदह चीज़ों को बदलने का मअना है खस्सी करना,

( तफ़्सीरे कबीर जिल्द 4, सफ़ह 223)

और हदीस शरीफ़ में है,

हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू अन्ह से रिवायत है,
हमने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से अर्ज़ किया के क्या हम ख़स्सी होने की ख्वाहिश ना करें तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हमको उससे मना फ़रमाया,

( बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2, सफ़ह 759)

और एक दसरी हदीस में है,

रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया,

ليس منا من خصى و اختصى،

यानी---वह इंसान जो खुद ख़स्सी हुआ या दूसरे को खस्सी किया वह हम में से नहीं,

( अल मुअज्जमुल कबीर लित्तिबरानी जिल्द 11, सफ़ह 112)

और वह औरतें जो ऑपरेशन करा लेती हैं ताकि बच्चा ना हो और वह जो सर्जरी कराके जिस्म के क़ुदरती बनावट को बदल डालती हैं, उनके बारे में सरवरे दो आलम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं,

لعن الله المغيرات خلق الله،

अल्लाह की लानत उन औरतों पर जो अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ (जिस्म की क़ुदरती बनावट) को बदलने वाली हैं,, मुलख़सन)

और कुछ लोग यह ख़याल करते हैं कि ज़्यादा औलाद हो जाएंगे तो परेशानियां बढ़ जाएंगी, कहां से इंतजाम होगा कैसे खिलाएंगे और कहां से पिलाएंगे, वगैरह, और यह भी सोचते हैं कि औलाद ज़्यादा होगी तो ग़ुरबत व इफ़लास आएगी, इसलिए नसबंदी कराते हैं यह सब ख़याल ग़लत हैं,

अल्लाह तआला फ़रमाता है,

तर्जामा----- और अपनी औलाद को क़त्ल ना करो मुफ़लिसी के बाइस, हम ही तुम्हें और उन्हें सब को रिज़्क़ देते हैं,

(पारा 6, सूरह अनआम, आयत 151)

और हुजूर मुफ़्ती ए आज़म हिंद अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं,

ज़ब्त तवल्लीद के लिए मर्द की नसबंदी या औरत का ऑपरेशन मुतअद्दिद वुजूह से शरअन ना जाइज़ व हराम है, इसमें अल्लाह की पैदा की हुई चीज़ को बदलना है, और क़ुरान व हदीस की नस्स से नाजाइज़ व हराम है,

नीज़ इसमें बा वजहे शरई एक नस और उज़ू काटा जाता है, वह भी ऐसी नस ऐसा उज़ू जो तवल्लुद व तनासुल का ज़रिया है और बे ज़रूरते शरई दूसरे के सामने सतर, वह भी सतरे ग़लीज़ खोला जाता है,
और उसको छूता भी है, और यह तीनों उमूर भी हराम हैं,
किमानी कुतुबुल फ़िक़ह,

और यह क़अ्ता ए तवल्लुद होने का सबब (पैदाइश रोकने की वजह) मअनी جصا، खस्सा में दाखिल और इंसान का खस्सी होना और करना भी यह नस्से क़ुरआन व हदीस हराम है, 
(यानी क़ुरआन व हदीस से साबित है कि बच्चों की पैदाइश रोकने के लिए नसबंदी कराना हराम है)

( फ़तावा मुस्तफ़वियह, सफ़ह 531-मुलख़सन)

लिहाजा नसबंदी या ऑपरेशन इम्साक तवल्लुद के लिए शरीयते इस्लामिया में हरगिज जाइज़ नहीं, बल्के हराम है, इसलिए जुमला मुसलमानों पर लाज़िम व वाजिब है कि इससे बचें और नफ़रत व एहतेराज़ करें,

(औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.130--132--133)