दुनिया का सबसे पहला मज़हब कोन सा है।
और फिर दूसरे मज़हब कैसे बने इस पोस्ट में हम जानेंगे
जैसा कि बहुत से गैर मुस्लिम ये समझते हैं कि इस्लाम 1400 साल पहले आया।
लेकिन सही बात ये है कि इस्लाम नही बल्कि
अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम 1400 साल पहले तशरीफ़ लाये और उनसे पहले 1लाख 24हज़ार कामो बेस अल्लाह के नबी और रसूल आये इस दिनया में।
अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम 1400 साल पहले तशरीफ़ लाये और उनसे पहले 1लाख 24हज़ार कामो बेस अल्लाह के नबी और रसूल आये इस दिनया में।
अल्लाह के रसूल और नबी क्यों आये इस दुनिया मे।
आइये क़ुरान शरीफ से जानते हैं
(नबी और रसूल के बारे में जानिये उनमें क्या खूबी होती है ये सब जानने के लिये इस लिंक पर क्लिक करके पढ़िये Nabi Aur Rasool)
सूरह: अल बक़रह
आयत: 213
तर्जुमा कंजूल ईमान
लोग एक दीन पर थे
फिर अल्लाह ने नबी भेजे ख़ुशख़बरी देते
और डर सुनाते
और उनके साथ सच्ची किताब उतरी
कि वह लोगों में उनके मतभेदों का फैसला कर दे और किताब में मतभेद उन्हीं ने डाला जिन को दी गई थी
बाद इसके कि उनके पास रौशन हुक्म आ चुके
आपस की सरकशी से तो अल्लाह ने ईमान वालों को वह सच्ची बात सुझा दी जिसमें झगड़ रहे थे अपने हुक्म से और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए
तफ़्सीर
हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से हज़रत नूह के एहद तक सब लोग एक दीन और एक शरीअत पर थे. फिर उनमें मतभेद हुआ तो अल्लाह तआला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा. ये रसूल बनाकर भेजे जाने वालों में पहले हैं (ख़ाज़िन)
जैसा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम व शीस अलैहिस्सलाम व इद्रीस अलैहिस्सलाम पर सहीफ़े और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात, हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पर ज़ुबूर, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर इन्जील और आख़िरी नबी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर क़ुरआन
(सूरह आले इमरान आयात 52)
फिर जब ईसा ने उनसे कुफ्र पाया (20)
बोला कौन मेरे मददगार होते हैं अल्लाह की तरफ़ हवारियों (अनुयाइयों) ने कहा (21)
हम ख़ुदा के दीन के मददगार हैं हम अल्लाह पर ईमान लाए और आप गवाह हो जाएं कि हम मुसलमान हैं(22) (52)
तफ़्सीर
21) हवारी वो महब्ब्त और वफ़ादारी वाले लोग हैं जो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के दीन के मददगार थे और आप पर पहले ईमान लाए. ये बारह लोग थे.
22) इस आयत से ईमान और इस्लाम के एक होने की दलील दी जाती है. और यह भी मालूम होता है कि पहले नबियों का दीन इस्लाम था न कि यहूदियत या ईसाइयत.
(सूरह: आले इमरान आयात 65)
ऐ किताब वालो इब्राहीम के बारे में क्यों झगड़ते हो, तौरात और इंजील तो न उतरी मगर उनके बाद तो क्या तुम्हें अक़ल नहीं (4) (65)
तफ़्सीर
4) नजरान के ईसाइयों और यहूदियों के विद्वानों में बहस हुई. यहूदियों का दावा था कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम यहूदी थे और ईसाइयों का दावा था कि आप ईसाई थे. यह झगड़ा बहुत बढ़ा तो दोनों पक्षों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को हकम यानी मध्यस्त बनाया और आप से फ़ैसला चाहा. इस पर यह आयत उतरी और तौरात के विद्वानों और इन्जील के जानकारों पर उनकी अज्ञानता ज़ाहिर कर दी गई कि उनमें से हर एक का दावा उनकी जिहालत की दलील है. यहूदियत व ईसाइयत तौरात और इंजील उतरने के बाद पैदा हुई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ज़माना, जिन पर तौरात उतरी, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से सदियों बाद का है और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम, जिन पर इंजील उतरी, उनका ज़माना हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बाद दो हज़ार बरस के क़रीब हुआ है और तौरात व इंजील किसी में आपको यहूदी या ईसाई नहीं कहा गया है, इसके बावजुद आपकी निस्बत यह दावा जिहालत और मूर्खता की चरम सीमा है.
(सूरह: आले इमरान आयात 67)
इब्राहीम यहूदी न थे और न ईसाई बल्कि हर बातिल (असत्य) से अलग मुसलमान थे और मुश्रिकों से न थे (9) (67)
तफ़्सीर
9) तो न किसी यहूदी या ईसाई का अपने आपको दीन में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ़ मन्सूब करना या जोड़ना सही हो सकता है, न किसी मुश्रिक का. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इसमें यहूदियों और ईसाईयों पर ऐतिराज है कि वो मुश्रिक हैं.
तौरात, ज़ुबुर, इन्जील को बाद में अपने मनमर्ज़ी से बदल दिया गुमराह लोगो ने
तो आखिरी किताब क़ुरआन दिया अल्लाह ने और आखिरी नबी सरकारे दो जहां मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
क़ुरआन शरीफ के बाद अब अल्लाह का कोई दूसरा किताब नही आएगा और न कोई क़ुरान शरीफ को बदल सकता है जैसा कि पहले के किताब को बदल दिया दौलत और ख्वाहिश के लिये
और क़ुरआन शरीफ याद करने के लिए अल्लाह ने आसान किया है
लेकिन क़ुरान शरीफ सिर्फ तरजुमा से नही समझा जा सकता है
क़ुरआन शरीफ में ऐसे आयात भी है जिसके बज़ाहिर मतलब भी वही है जो उसके अल्फ़ाज़ हैं
और ऐसे आयात भी हैं कि अल्फ़ाज़ कुछ और है और मानी कुछ और
और कुछ आयात इंसान समझ ही नही सकता।
क़ुरआन शरीफ कब उतरी और किस लिए उतरी ये सब भी जानना बहुत अहम है
तरजुमा तफ़्सीर और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी मुबारक को अच्छे से पढ़ने के बाद ही इंसान क़ुरआन शरीफ समझ सकता है।
क़ुरआन शरीफ में दुनिया बनने से लेकर दुनिया खत्म होने के बाद तक कब क्या हुआ और क्या होगा। यहां तक कि ऐसा कुच्छ नही जो क़ुरआन शरीफ़ में न हो बस समझने वाला चाहिये और क़ुरआन शरीफ़ के हिफाज़त का ज़िम्मा खुद अल्लाह तआला ने लिया है इसीलिये इसमे कोई फेर बदल नही कर सकता
और जिसे इतना बेहतरीन किताब मिला हो वो अल्लाह का रसूल कितने शान और शौकत वाला होगा SubHaanAllah
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आखिरी नबी हैं आप के बाद कोई नबी नही आएगा।
तो यहूदी हो या ईसाई सब मुसलमान ही थे
वो अपने किताब और नबी के बातो से फिर गए और गुमराह हो गए
ईमान ये है कि अल्लाह और अल्लाह के रसूल ने जिस चीज़ को हलाल बताया उसे हलाल समझो और जिस चीज को हराम बताया उसे हराम समझो।
अल्लाह और रसूल के एक बात से भी इंकार के बाद इंसान ईमान वाला नही रहता
और उसी तरह अल्लाह और रसूल के शान में अदना सा भी तौहीन करने वाला ईमान से खारिज हो जाता है
और ऐसे बददीन गुमराह से दोस्ती रखने वाला भी अल्लाह के अज़ाब का शिकार होगा
और यहूदी ईसाई या दूसरे लोग अपना गलत सलत विचारधारा बना लिये इस। और दिन ए इस्लाम से फिर गये
और इसी तरह यहूदी ईसाई या दूसरे मज़हब बने इस्लाम से खारिज हो कर
तो उम्मीद है कि बात समझ आ गयी होगी
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