async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6267723828905762'/> MASLAK E ALAHAZRAT ZINDABAAD: दीवाली पर मुबारक बाद
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Wednesday, November 3, 2021

दीवाली पर मुबारक बाद देना कैसा

दिवाली की मुबारकबाद देना और दिवाली की मिठाई

   मस्अला: होली दिवाली बद-मज़हबों के त्योहारों पर हिंदुओं को मुबारकबाद देना। सख़्त हराम, और कुफ़्र की तरफ़ ले जाने वाला काम है।

   मस्अला: अगर अपनी खुशी से मुबारकबाद दे या शरीक हो या उनके इस काम को अच्छा समझे। तो ऐसा करने वाला काफ़िर होगा। उस पर तोबा तज्दीद-ए-ईमान, तज्दीद-ए-निकाह ज़रूरी है।

   मस्अला: अगर मजबूरी में ऐसा करना पड़े, ना करने पर जान जाने का ख़तरा हो, या नौकरी वगैरह की वजह से ऐसा करना पड़ता है। फिर भी ऐसा करना सख़्त हराम है। बचना निहायत ज़रूरी है।

   मस्अला: मुसलमान को होली दिवाली के इश्तिहार, पोस्टर वगैरा छापना। यह सब भी हराम है। और उसका पैसा लेना भी हराम और गुनाह है।

   मस्अला: हिंदुओं के त्यौहार की मिठाई उनके त्यौहार के दिन लेना जाइज़ नहीं है। कि यह एक तरीके से उसमें शरीक होना माना जाएगा। किसी और दिन ले सकते हैं।

 (📕 फ़तावा शारेह् बुखारी, जिल्द 2, पेज नंबर 565,566,597,598)

सुवाल:होली, दीवाली हिंदूओं का परब है या नहीं_?
अगर है तो यह किस बिना पर जारी हुआ है_?
इस की इब्तिदा कैसे हुई_?
मुसलमान अगर इस को करें तो क्या उन पर कुफ़्र आईद होगा_?

अल'जवाब:_
होली, दीवाली हिंदूओं के शैतानी त्योहार हैं, जब ईरान ख़िलाफ़ते फ़ारूक़ी में फ़तह हुआ भागे हुए आतिश परस्त कुछ हिंदुस्तान में आए उनके यहां दो (2) ईदें थीं, नौरोज़ के तहवीले हमल है और महेरगान के तहवीले मिज़ान, वो ईदें और उन में आग की परस्तिश हिंदुओं ने उन से सीखीं और यह चांद सूरज दोनों को पूजते हैं लिहाज़ा इनके वक़्तों में ये तरमीम के मेख संखरांत की पूर्णमाशी में होली और तिला संखरांत की अमावस् में दीवाली ये सब रसूमे कुफ़्फ़ार हैं, मुसलमानों को इन में शिरकत हराम और अगर पसंद करें तो सरिह कुफ़्र..

ग़मज़ुल उयून में है:
اتفق مشایخنا ان من رأی امرالکفارحسنا فقد کفر حتی قالوا فی رجل قال ترک الکلام عنداکل الطعام حسن من المجموسی اوترک المضاجعۃ عندھم حال الحیض حسن فہو کافر

हमारे मशाइख़ का इतेफ़ाक़ है के अगर किसी ने कुफ़्फ़ार के किसी मुआमला को अच्छा कहा तो वह काफ़िर हो जाएगा हत्ता के उन्होंने उस शख़्स को काफ़िर क़रार दिया जो यह कहे के खाने के वक़्त मजूसी के हां गुफ़्तगूं ना करना बहोत अच्छा अमल है या उनके हां हालाते हैज़ में हमबिस्तरी ना करना अच्छा अमल है.

[📗फ़तावा रज़विय्याह, ज-14, स-681/682]