async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6267723828905762'/> MASLAK E ALAHAZRAT ZINDABAAD: मज़रात की हाज़िरी शिर्क नहीं मुस्तहब है
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Saturday, November 21, 2015

मज़रात की हाज़िरी शिर्क नहीं मुस्तहब है


मज़ारात की हाज़िरी शिर्क नहीं मुस्तहब है
सवाल
मज़ाराते औलिया पर जाना कैसा है
जवाब
मज़ाराते औलिया पर जाना जाएज़ और मुस्तहब है जैसा के रसूलुल्लाह ने इरशाद फरमाया के मैंने तुम्हें क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था अब ज़ियारत किया करो
मुस्लिम शरीफ हदीस नम्बर 2260
सवाल
किया हुज़ूर भी मज़ारात पर तशरीफ़ लेजाया करते थे
जवाब
हाँ हुज़ूर भी मज़ारात पर तशरीफ़ लेजाया करते थे जैसा के हज़रते अबू हुरैरह से रिवायत है के हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने अपनी वालिदह की कब्र की ज़ियारत की आप ने वहाँ गिरयह फरमाया और जो सहाबह आप के साथ थे वह भी रोए
मुस्लिम शरीफ हदीस नम्बर 2258
रद्दुल मुख्तार में है के इमामे बुखारी के उस्ताद इमाम इब्ने शैबह से रिवायत है के हुज़ूर हर साल शुहदाए उहुद के मज़ारात पर तशरीफ़ लेजाते थे
इमामे फखरुद्दीन राज़ी [विसाल 606 हिजरी] फ़रमाते है हुज़ूर अलैहिस्सलाम हर साल शोहदाए उहुद के मज़ारात पर तशरीफ़ लेजाते और आप के विसाले मुबारक के बाद चारो खुलफ़ाए किराम भी ऐसा ही करते थे
(तफ़सीरे कबीर सूरतुर रअद ज़ेरे तहत आयत नम्बर 20)
सवाल
किया सहाबए किराम भी किसी के मज़ार पर जाते थे
जवाब
जी हाँ सहाबए किराम हुज़ूर के मज़ारे अक़्दस पर हाज़िरी दिया करते थे
बहुत मशहूर रिवायत है के हज़रते उमर बिन ख़त्ताब के ज़माने में लोग क़हत में मुब्तला होगए एक सहाबी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्रे अतहर पर आए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह आप अपनी उम्मत के लिए बारिश माँगिए क्यों के वह हलाक होगई
(मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैबह हदीस नम्बर 32002)
इससे ये भी साबित हुआ के ज़ियारते मज़ार के साथ साहेबे मज़ार से मदद तलब करना सहाबह का तरीकह है
हज़रते दाउद बिन सालेह से मरवी है के वह बयान करते हैं के एक रोज़ मरवान आया और उसने देखा के एक आदमी हुज़ूर के मज़ारे अनवर पर अपना मुह रखे हुए है तो [मरवान] उसने कहा किया तू जानता है के तू किया कर रहा है? जब मरवान उसकी तरफ गया तो देखा वह सहाबिये रसूल हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी थे और उन्हों ने जवाब दिया हाँ मैं जानता हूँ के मैं रसूलुल्लाह के पास आया हूँ मैं किसी पत्थर के पास नहीं आया
(मुसनदे इमामे अहमद बिन हम्बल हदीस न 23646)
सवाल
हदीस में है के तीन मस्जिदों [मस्जिदे हराम मस्जिदे अक्सा मस्जिदे नबवी शरीफ] के सिवा किसी जगह का सफ़र न किया जाए फिर लोग मज़ाराते औलिया की नीय्यत से सफ़र क्यों करते हैं?
जवाब
इस हदीस का मतलब ये है के इन तीनों मस्जिदों में नमाज़ का सवाब ज़ियादह मिलता है जैसे मस्जिदे हराम में एक नमाज़ का सवाब एक लाख के बराबर मस्जिदे अक्सा और मस्जिदे नबवी शरीफ में एक नमाज़ का पचास हज़ार के बराबर है इसलिए तीनों मस्जिदों में इस नीय्यत से दूर से आना चूंके फ़ाएदह मन्द है, जाएज़ है, लेकिन किसी और मस्जिद की तरफ सफ़र करना ये समझ कर के वहाँ सवाब ज़ियादह मिलता है, ये नाजाएज़ है, क्यों के हर जगह की मस्जिद में सवाब बराबर है और हदीस में उसी जियादती सवाब की नीय्यत से सफ़र करने को मना फरमाया है,
आज लोग तिजारत के लिए सफर करते हैं इल्मे दिन के लिए सफ़र करते हैं तबलीग के लिए सफ़र करते हैं और बे शुमार दुनयावी कामों के लिए सफ़र किये जाते हैं तो ये सब सफ़र हराम होंगे? हरगिज़ नहीं बलके ये सारे सफ़र जाएज़ हैं और इसका इनकार कोई भी नहीं कर सकता तो फिर मज़ाराते औलिया के लिए सफ़र करना नाजाएज़ क्यों होगा बल्के इमामे शाफ़ई फ़रमाते हैं मैं इमामे अबू हनीफह रदियल्लाहू अन्हु के मज़ार से बरकत हासिल करता और उनके मज़ार पर आता हूँ अगर मुझे कोई हाजत दर पेश होती है तो दो रक्आतें पढ़ता हूँ और उनके मज़ार के पास जाकर अल्लाह से दोआ करता हूँ तो हाजत जल्द पूरी होजाती है
[रद्दुल मुख्तार मुक़द्दमह]
इमामुल मुहद्देसीन अबू बकर खुजैमह, शेखुल मुहद्देसीन अबू अली सक्फी और उनके साथ कई मशाएख इमाम अली रज़ा मुसा काज़िम रदियल्लाहू अन्हुमा के मज़ार पर हाज़िर हुए और मज़ार की खूब ताज़ीम फ़रमाई
[तहज़ीबुत तहज़ीब]
अगर मज़ाराते औलिया पर जाना शिर्क होता तो किया हुज़ूर अलैहिस्सलाम अपनी वालिदह माजिदह और शुहदाए उहुद के मजारों पर तशरीफ़ लेजाते?
किया सहाबए किराम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मज़ार पर हाज़िरी देते? किया ताबेइन, मोहद्देसीन, मुफ़स्सेरीन, मुज्तहेदीन, मज़ाराते औलिया पर हाज़िरी के लिए सफ़र करते?
पता चला मज़ारात पर हाज़िरी हुज़ूर अलैहिस्सलाम आप के असहाब और आप की उम्मत के मुज्तहेदीन, मुहद्देसीन और मुफ़स्सेरीन की सुन्नत है और यही अहले इस्लाम का तरीकह रहा है और इस मुबारक अमल पर शिर्क के फतवे देने वाले सिराते मुस्तक़ीम से भटके हुए हैं
इन्ही गलत फतवों की वजह से उनके हम ख़याल दहशत गरद जमाअतों को तशद्दुद की राह मिली
और आज मज़ाराते औलिया को वहाबी दहशत गर्द बमों से शहीद कर रहे हैं जबके वहाबियों ने हरमैन के क़ब्रस्तानों में सहाबए किराम व अकाबेरीन के मजारों को ज़मीन बोस कर दिया
और मज़ाराते औलिया पर होने वाले खुराफात को मोखालेफिन इमाम अहमद रज़ा की तरफ मनसूब करते हैं जबके हकीक़त ये है के मज़ाराते औलिया पर होने वाली खुराफात का अहले सुन्नत जमाअत से कोई तअल्लुक़ नहीं है बल्के इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा अलैहिर रहमा ने अपनी किताबों में उनका खुल्लम खुल्ला रददे बलीग फरमाया है
औरतों का मज़ार पर जाना नाजाएज़ है: सिवाए रौज़ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के किसी मज़ार पर जाने की इजाज़त नहीं
(फतावह रज्वियह जिल्द 9 सफहा 541 )