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Friday, October 1, 2021

हया ज़रूरी क्यों है



                【 كُلُّ نَفْسٍ ذَآئِقَةُ الْمَوْت 】

                  *आख़िर मरना हैं!* 

"हया" इमान का ज़ेवर है जिसकी हया सलामत है उसका इमान सलामत है हया कि मौजूदगी में गुनाह कम होगा बे-हयाई गुनाहों कि जड़ है जब किसी क़ौम में बे-हयाई आम हो जाये तो उसकी हलाक़त यक़ीनी है।

अगली उम्मतों में जिनको हलाक़ कर दिया गया उनमे हया का फुकदन (न के बराबर) था मुसलमानो को उन क़ौमों की हलाक़तों सेय इबरत हासिल करनी चहिये।

हया इमान कि शाख है और बे-हयाई फहश और बुराई का दरवाज़ा है शैतान मलऊन बे-हया है और अल्लाह पाक कमाल हया वाला बे-हयायी कि बात से हया वाला नाराज़ होता है और गज़ब फ़रमाता है और बे-हया यानि शैतान लाइन खुश होता है।

हुज़ूर नबी ए रहमत शफी ए उम्मत ﷺ ने फ़रमाया : हया इमान से है और इमान जन्नत में है और फहश बकना बेअदबी है और बेअदबी दोज़ख में है।

आइये एक कॉल मौला अली शेरे ख़ुदा रादिअल्लाहु तआला अन्हु का समात फ़रमाये फ़िर अपनी बात पर आता हूँ : *फ़रमान हैं कि जब आँखें नफ़्स की पसंदीदा चीज़ देखने लगें तो दिल अन्जाम से अंधा हो जाता हैं!*

इल्म वालों के लिए ऊपर की तमाम बातें काफ़ी होंगी आज के बे-हयाई औऱ गुनाहों में मुब्तला होने की असल वज़ह को लेकर अब ज़रूरत हैं कि मर्ज़ के मालूम हो जाने पर उसका बेहतर इलाज़ किया जाए!

नेकियों से मोहब्बत औऱ उस मोहब्बत पर अमल करने की तौफीक़ औऱ सबसे बढ़कर उस नेकी में लज़्ज़त जब तक हममें ये तीनों बातें दाख़िल न होंगी हमारी ज़िन्दगी क़ामयाब नहीं होने वाली कसरत से तौबा व दुआ औऱ इबादतों की कोशिश करें!