नियाज़, फ़ातिहा और इसाले सवाब का सुबूत — कुरआन, हदीस और इज्मा से
"जिस खाने पर अल्लाह का नाम लिया गया हो, भला वो हराम या शिर्क कैसे हो सकता है?"
कुरआन साफ़ कहता है:
فَكُلُوا مِمَّا ذُكِرَ ٱسْمُ ٱللَّهِ عَلَيْهِ
“तो खाओ उसमें से जिस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो।”
(सूरह अल-अनआम – 6:118)इस आयत में साफ फ़रमाया गया कि खाओ उसमें से जिसपे अल्लाह का नाम लिया गया हो और ये एक आयत काफी है फातेहा नियाज़ के दलील के लिए लेकिन आगे बढ़ते है.
وَمَا لَكُمْ أَلَّا تَأْكُلُوا مِمَّا ذُكِرَ ٱسْمُ ٱللَّهِ عَلَيْهِ
“और तुम्हें क्या हुआ कि उसमें से न खाओ जिस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो।”
(सूरह अल-अनआम – 6:119)भला कोई मुसलमान उस खाने को क्यों न खाए जिसपे अल्लाह का नाम लिया गया हो बेशक ये काम किसी मुसलामान का तो हरगिज़ नहीं हां शैतान है जो नहीं खाता कुरआन पढ़ा हुआ खाने को इसलिए हम हर खाने के चीज़ को बिस्मिल्लाह पढ़ के खाते हैं ताकि शैतान उस खाने में शरीक न हो तो अब मतलब साफ है जो नहीं खाते वो असल में शैतान के पैरोकार है
अब आइए इज़मा ए उम्मत क्या है देखते हैं
फातिहा और इसाले सवाब का इज्मा
इसाले सवाब का मतलब है अपने किसी भी नेकी के अमल का सवाब किसी दूसरे मुसलमान को तोहफ़ा करना — चाहे वो तिलावत हो, नमाज़ हो, रोज़ा हो, या सदक़ा-खैरात।
फिक़ह-ए-हनाफ़ी की मशहूर किताब हिदायह में है:
"आदमी अपने अमल का सवाब दूसरे को बख्श सकता है – चाहे वो बदनी इबादत हो या माली।"
शरह फिक्ह-ए-अकबर में है कि:
"इमाम ए आज़म अबू हनीफा और इमाम अहमद बिन हंबल समेत सल्फ़-ए-सालिहीन का अक़ीदा है कि इबादत का सवाब मुर्दों को पहुँचता है।"
हदीस से दलाइल:
बुखारी और मुस्लिम में बहुत सी रिवायतें हैं कि रसूलअल्लाह ﷺ ने खाना सामने रख कर दुआ फ़रमाया करते
हज़रत सअद ने अपनी वालिदा के लिये कुआं खुदवाया, फरमाया:
"इस कुएं का पानी सअद की माँ के इसाले सवाब के लिए है।"
अब रही बात सामने रख कर दुआ मांगना या कुछ पढ़ना तो कुर्बानी के जानवर पे जो दुआ पढ़ी जाती है इससे बड़ी क्या दलील होगी
क़ुरबानी के जानवर पर दुआ:
"اللهم تقبل هذه الأضحية من فلان"
"या अल्लाह! ये क़ुर्बानी फलाँ की तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा।"
– इस दुआ में "हाज़िहि" (यह) लफ़्ज़ इस बात की दलील है कि जिस चीज़ पर सवाब भेजना हो, वह सामने रखी जाती है।और फिर जनाज़े को भी सामने रख कर उसके सामने कुरआन शरीफ भी पढ़ते हैं और दुआ भी करते हैं मैय्यत के लिए और दुरुद शरीफ भी पढ़ते हैं
फातिहा क्या है?
फातिहा का मतलब है:
- हलाल खाने का इन्तेज़ाम,
- कुरआन शरीफ़ की तिलावत करना,
- और फिर उसका सवाब तमाम नेक बंदों को पहुँचाना।
क्या कुरआन पढ़ना और अल्लाह का नाम लेना कभी शिर्क हो सकता है?
अलहम्दुलिल्लाह अहले सुन्नत का हर अकीदह और अमल कुरआन और हदीस से साबित है।और मैं अभी ही कह देता हूं तुम कभी भी कोई आयत या हदीस पेश नहीं कर सकते।
और अब भी कहते हो कि खाना सामने रख के फातेहा पढ़ना शिर्क़ बीदअत है तो फिर खाना खाते वक्त बिस्मिल्लाह न पढ़ो
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