तवज्जोह,,,पूजना शिर्क है चूमना शिर्क नहीं
नजदी"""""""""चूमना शिर्क है
सुन्नी"""""मालूम हुआ के नजदी को शिर्क की तआरिफ
नहीं आती अगर शिर्क की तारीफ़ आती तो नजदी ये
बात न करता क्यों के चूमना तो शिर्क की जडें काटता
है इसलिए के
अल्लाह को चूम नहीं सकते और जिसको चूमा जाए वह
अल्लाह नहीं होता
हम अल्लाह के प्यारों के हाथ पाँव चूम कर ये साबित
करते हैं के ये अल्लाह नहीं हैं जो अल्लाह है वह चूमा नहीं
जाता
हदीस शरीफ
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रते फातिमा
रदियल्लाहू अन्हुमा दोनों [एक मुहब्बत से दुसरे अदब से] एक
दुसरे के हाथ चूमा करते थे।
इमामे बुखारी की मशहूर किताब अलअदबुल मफरद सफहा
183,,,अबू दाउद जिल्द 2 सफहा 218,,,मिश्कात शरीफ
सफहा 402,,,हुज्जतुल बालिगह जिल्द 2 सफहा 148,,,
मुदारिजुन नुबूव्वत जिल्द 2 सफहा 542
हदीस शरीफ़
हज़रते ज़राअ रदियल्लाहू अन्हु फ़रमाते हैं के हम वफ़्दे अब्दुल
क़ैस में शामिल थे जब हम मदीना शरीफ़ में आए तो जल्दी
जल्दी अपनी सवारियों से उतरे और नबी अलैहिस्सलाम
के हाथों और पाँओँ को चूमने लगे।
अबू दाउद शरीफ जिल्द 2 सफहा 218,,,मिश्कात शरीफ
सफहा 402,,,
हदीस शरीफ़
हज़रते सफ्वान बिन एसाल रदियल्लाहू अन्हु फरमाते हैं दो
यहूदियों ने नबीए करीम अलैहिस्सलाम का कलिमह पढ़ा
और नबी के हाथों और पाओँ को चूमा।
तिरमिज़ी शरीफ़ जिल्द 2 सफहा 98,,,मिश्कात शरीफ
सफहा 17,,,हुज्जतुल्लाहि अलल आलमीन सफ्ह 118
विसाल के बाद चूमने की दलील भी याद रहे
हदीस शरीफ़
नबीए करीम के विसाले ज़ाहिर के बाद हज़रत अबू बकर
सिद्दीक ने नबी की पेशानी को चूमा।
बुखारी शरीफ़ जिल्द 1 सफहा 166,,,इब्ने माजह शरीफ
हदीस नम्बर 1496,
नजदी""""हम लोग सहाबी के अमल को हुज्जत नहीं मानते
नबी के अमल की बात करो
सुन्नी""""""हाँ नज्दियों तुम शीअह की तरह सहाबए
किराम का भी इन्कार करते हो आओ तुम्हें नबी का ही
अमल बताते हैं
नबी अलैहिस्सलाम के रज़ाई भाई हज़रते उस्मान बिन
मजउन का विसाल हुआ तो नबी ने विसाल के बाद
उनकी पेशानी को चूमा
अबू दोउद शरीफ बाब नम्बर 581,,,हदीस नम्बर
1386,,,इब्ने माजह शरीफ बाब नम्बर 434,,,हदीस नम्बर
1517
नजदी""""तुम मज़ार को चूमते हो वह तो बेजान है
सुन्नी"""""अगर बे जान चीज़ को चूमना शिर्क है तो
नबीए करीम सहाबए किराम हजरे अस्वद को न चूमते
मालूम हुआ के मोतबर्रक चीज़ को चूमना तो सुन्नत है
रही बात मज़ार की तो
अबू दाउद बिन अबी सालेह से रिवायत है के एक दिन
मरवान नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रौज़े पर
आया तो देखा एक साहब अपना चेहरा क़ब्रे अनवर पर रखे
हुए है
मरवान ने कहा तुम्हे मालूम है तुम किया कर रहे हो? उन
साहब ने जब अपना चेहरा क़ब्रे अनवर से उठाया तो वह
सहाबिए रसूल हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी थे
उन्हों ने फ़रमाया हाँ मैं जानता हूँ मैं रसूलुल्लाह के पास
आया हूँ किसी पत्थर के पास नहीं आया
मुसनदे अहमद जिल्द 5 सफहा 422,,,मजमउज़ ज़वाइद जिल्द
4 सफहा 5,,,मुसतदरक इमामे हाकिम जिल्द 4 सफहा
515,,,इमामे हाकिम ने फरमाया ये हदीस सहिहुल
अस्नाद है
सुन्नी""""""अगर हम अहले सुन्नत चूम लें तो नजदी शिर्क का
फ़तवा लगता है मगर प्यारे सहाबी को देखो अपना पूरा
चेहरा ही क़ब्रे अनवर पर रख कर जलवह अफरोज़ थi
.
[ ऐ ख़ुदा दिल हमारा तू साफ़ कर देना..
हुई जो ख़तायें उन्हे तू माफ़ कर देना..
करते-रहते हम, न जाने कितने ग़ुनाह
“मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ” के वसीले से उन्हे तू माफ़ कर देना..
No comments:
Post a Comment